पटना, ११ अगस्त। “हम तो झरबेर हैं यों ही झर जाएँगे/ सारी ख़ुशियाँ तेरे नाम कर जाएँगे/ कौन आज बाँसुरी बजाने लगा/ मन में धीरे प्रीत जगाने लगा/ उलझनों से कह दो न उलझे मुझसे/ अर्शे बाद हँसने की ख़्वाहिश हुई है“। इसी तरह की, वेदना के आँसूँ से भिगी हुई कविताओं के साथ, हिन्दी और भोजपुरी की वरिष्ठ और लोकप्रिया कवयित्री डा सुभद्रा वीरेंद्र श्रोताओं के हृदय को भिगोती रहीं। वो, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, मंगलवार की संध्या ६ बजे से ७ बजे तक दिल्ली से लाइव थीं।
गीत को अत्यंत मीठे स्वर से पढ़ने वाली सुभद्रा जी ने अपनी एक दूसरी रचना में नारी–मन की वेदना को इस तरह शाब्द दिए कि, -“कितनी पीर संजोयी मन में/ अहरह ताकूँ दूर गगन में/ सूख गया कब नीला सागर/ रीत गयी कब अपनी गागर/ सोन चिरैया विफ़रे तलफे/ ढूँढूँ मैं कहाँ सघन वन में“। इसी तरह के अनेक मधुर गीतों की एक सरस सलीला घंटे भर से कुछ अधिक देर तक बहती रही और सैकड़ों की संख्या में पटल से जुड़े सुधी श्रोता उसमें डुबकियाँ लगाते रहे।
आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मेलन के पटल पर डा सुभद्रा वीरेंद्र का हार्दिक स्वागत किया तथा सैकड़ों की संख्या में पटल से जुड़ कर आनंद ले रहे सुधी दर्शकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। डा सुलभ ने बताया कि फ़ेसबुक लाइव का अगला कार्यक्रम १३अगस्त को होगा, जिसमें देश के वरिष्ठ कवि और ‘बिहार–गीत‘ के रचनाकार कवि सत्यनारायण अपनी रचनाओं के साथ उपस्थित होंगे।
संजय कुमार राय.