पटना, ११ जुलाई। “यह अजीब संकट है साधो! यह अजीब संकट है/ अस्सी के तट सिमटे सहमे दास कबीर खड़े हैं/ सुनो कबीर ! कहत है साधो / हम माटी के खेल–खिलौने/ बिकते आए औने–पौने“। समय के नब्ज़ को पकड़ने वाली और समाज से सीधा सरोकार रखने वाली, ऐसी ही ज्वलंत पंक्तियों के साथ, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर, गुरुवार की संध्या देश के अग्र–पांक्तेय कवि और ‘बिहार के राजगीत‘ लिखने वाले कवि सत्यनारायण, राँची से लाइव रहे।
तेज़ी से बदल रहे समाज में, किस तरह सबकुछ बदलता जा रहा है, इसका एक चित्र खींचते हुए उन्होंने अपनी यह पंक्तियाँ पढ़ी कि “वैशाली को ढूँढ रही है, कब से वैशाली/ गणाध्यक्ष, गणतंत्र, सभा
आज बड़े साहबों के छोटे भी कितने बड़े बनाने लगे हैं, इसकी व्यंजना कवि ने ‘सूरज के घोड़े‘ का प्रतीक लेकर किया – “सूरज से भी बढ़े चढ़े हैं सूरज के घोडें ! लो, सूरज के हाथों से वल्गाएँ छूट गईं! बेलगाम हो गए सभी, सीमाएँ टूट गईं! किसको है अब चेत कि इन सातों के रूख मोड़े!
आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने पटल पर कवि सत्य नारायण का हार्दिकता से स्वागत किया तथा पटल से जुड़े सैकड़ों सुधी दर्शकों के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की। डा सुलभ ने बताया कि १६ अगस्त को भारत के ख्यातिलब्ध विद्वान और हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग के अध्यक्ष प्रो सूर्य प्रसाद दीक्षित, लखनऊ से पटल पर लाइव रहेंगे।