पटना, १ सितम्बर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के वरीय उपाध्यक्ष और ‘नया भाषा भारती’ त्रैमासिक पत्रिका के प्रधान संपादक नृपेंद्रनाथ गुप्त, सच्चे अर्थों में राष्ट्र भाषा के प्रहरी हैं। उन्हें यह लोक-उपाधि यों ही नही मिली है। इन्होंने राष्ट्र-भाषा हिन्दी के उन्नयन और प्रचार-प्रसार के लिए, संपूर्ण भारत वर्ष में अलख जगाए रखा है। अपने जीवन का बहुलांश इन्होंने ‘हिन्दी’ को समर्पित क्या है। यही कारण है कि पूरे देश में गुप्त जी ‘राष्ट्र-भाषा-प्रहरी’ के रूप में आदर पूर्वाकर स्मरण किए जाते हैं। इनकी वर्षों की तपस्या अब फलित हो रही है। ‘हिन्दी’ अब संपूर्ण भारतवर्ष में आदर के साथ स्वीकार की जा रही है।
यह बातें मंगलवार को, साहित्य सम्मेलन में, श्री गुप्त के ८७वें जन्म दिवस पर आयोजित अभिनंदन समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि गुप्त जी देश के उन थोड़े से लोगों में हैं, जो अपना तन, मन और धन गलाकर हिन्दी भाषा और साहित्य के संवर्धन में अपना योगदान दे रहे हैं। आरंभ में डा सुलभ ने, वंदन-वस्त्र और पुष्प-हार से श्री गुप्त का अभिनंदन किया।
आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, हिन्दी भाषा के लिए श्री गुप्त जी की सेवा अत्यंत सराहनीय है। हिन्दी के लिए इनका संघर्ष अप्रतिम है। राष्ट्र-भाषा के उन्नयन के लिए इनके द्वारा प्रकाशित त्रैमासिक पत्रिका ‘भाषा भारती संवाद’ संपूर्ण भारत वर्ष में प्रतिष्ठा प्राप्त कर रही है।
वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, डा ध्रूब कुमार, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, बाँके बिहारी साव, राजेश कुमार भट्ट, राज किशोर झा, प्रणब कुमार समाजदार, आनंद मोहन झा, सरदार दिलीप सिंह पटेल, निशिकांत मिश्र आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन डा शालिनी पाण्डेय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।