” सरकारी नौकरों को निजीकरण में दो ही नुकसान हैं “1) आपको समय पर ऑफिस आकर पूरा काम करना होगा।2) आपका प्रमोशन आपकी जाति और मक्खनबाजी नही अपितु आपका कर्म तय करेगा।तुलनात्मक रूप से सरकारी नौकरी में अधिकतर अयोग्य ही मिलेंगे कारण कि वे MS Excel नहीं बल्कि कागज कलम पर गुणा-भाग करके नौकरी कर रहे हैं।प्राइवेट सेक्टर में कितनी ही बार होता है कि एक कम्पनी को अन्य कंपनी द्वारा टेकओवर कर लिया जाता है और बहुत से मैनेजमेंट चेंजेस होते है पर कर्मचारी तो कभी नही रोते। मगर सरकारी वाले रोते हैं क्योंकि वे जानते हैं कि प्राइवेट में टिकना उनके बस का नही है।दूसरी बात आज से 15 साल पहले लोगों को शिकायत थी कि भारत आईटी में पीछे है। कारण भी पता था कि मक्कारी में बीएसएनएल के कर्मचारी स्टेट बैंक वालो से कम नही है। बाद में जैसे ही निजी उपक्रम आये और भारत देखते ही देखते आईटी हब भी बन गया, तो वही लोग बीएसएनएल के लिए फिर से रो रहे है।बच्चों को सरकारी स्कूलों में पढ़ाना नही चाहते, नगर परिवहन की बसों में चलने से परहेज है, सरकारी बैंक के कर्मचारियों पर जोक फॉरवर्ड करके कहते हैं कि निजीकरण बुरा है। ढोंग करने की भी एक सीमा होती है।बहरहाल सरकार का ध्यान सिर्फ प्रशासन, शिक्षा और स्वास्थ्य पर होना चाहिए। ट्रेन चलाना, विमान उड़ाना और बैंकिंग करना सरकार का काम नही है।। यदि अमेरिका और फ्रांस जैसी विश्वसत्ता के साथ गद्दी पर बैठना है तो भारत को पूंजीवाद की ओर बढ़ना चाहिए ना कि समाजवादी पाखंड की ओर।यह मोदी जी का अंतिम शासनकाल है, कारण कि वे 75 से अधिक आयु वालों को बाहर कर रहे हैं। 2024 के बाद वे भी इसी कार्यप्रणाली का अंग होंगे। यदि इससे पूर्व वे सभी उपक्रमों का निजीकरण कर दें तो आज भले ही देश उन्हें कोसे मगर यही देश कुछ सालों बाद उनका एहसान मानेगा।एक जमाना था,गुजरात मे कॉंग्रेस राज में बिजली अक्सर गुल हुआ करती थी।चूँकि उस वक्त कोंग्रेस सत्ता में थी और GEB ( गुजरात इलेक्ट्रिक बोर्ड ) नाम की सरकारी कंपनी थी। मोदी जी आए , फिर उन्होंने गुजरात की जनता को 24 घंटे बिजली का वादा किया और बहुत जल्द निभाया भी। GEB नामक सरकारी कंपनी के 4 टुकड़े किये और निजीकरण हुआ फिर गुजरात मे 24 घंटे ( रेसिडेंस ) बिजली मिली।ये शायद भारत का पहला राज्य बना जो 24 घंटे ( रेसिडेंस ) बिजली की आपूर्ति करता हो।शिकायतें भी सरकारी कंपनी के मुकाबले 90 % जल्दी सॉल्व हो जाती है।बिजली चोरी भी कम हुई ।ज्योतिग्राम योजना से 18 हजार गॉंवों में 3 फेज बिजली पहुँचा दी।।जिसके लिए वहां के विभागीय अधिकारियों ने 120 साल का समय मांगा था वो काम मोदी जी ने 4 वर्षों में कर दिया।मेरे एक जानने वाले लोको पायलट है उसकी सैलेरी 50,000 के लगभग है।2014 के बाद से वो नौकरी से परेशान रहने लगा, मैंने कारण पूछा तो पता चला पहले उसकी ड्यूटी 3 दिन में एक बार आती थी वो भी 8 घंटे की, उसमें भी 2 लोग साथ में ट्रेन चलाते थे, मोदी जी के आने के बाद हर दूसरे दिन ड्यूटी आती है, समय वही 8 घंटे। अब उससे ज्यादा बात होती नहीं है कारण वो मोदी जी को गाली देता है और मैं मोदी जी को सपोर्ट करता हूँ।।ये सच्चाई है सरकारी नौकरी वालों की। काम करना नहीं है पर सैलरी चाहिए आईएस/ आईपीएस वाली।जो पासपोर्ट बनवाने में 3 महीने लग जाते थे आज TCS से 3 दिनों मे बन जाता है बिना किसी परेशानी और बिना रिश्वत के।कामचोरी और हरामखोरी का एक ही विकल्प है: निजीकरण।।निजीकरण के विरोध के पीछे हरामखोरी मुख्य कारण है और राजनीति मे भ्रष्टाचार और जातिवाद इसी कारण से है।निजीकरण से सिर्फ फायदा है नुकसान नहीं।प्राईवेट कम्पनी के अच्छे पदों के कर्मचारियों के वेतन की कल्पना भी सरकारी कर्मचारी नहीं कर सकते।प्राईवेट सेक्टर में काम और योग्यता के आधार पर वेतन है। सरकारी कर्मचारियों मे योग्यता चाहे जो भी हो, काम करें न करें वेतन बराबर मिले यही कारण है प्राइवेटाईजेशन का विरोध।रेलवे मे मैने अच्छे अच्छे अधिकारियों और कर्मचारियों को देखा है जो बड़ी मेहनत और कर्मठता से कार्य करते हैं, पर वेतनमान सबके बराबर। जो कलम भी नहीं चलाते दिन भर गप्पे लड़ाकर दिन काटते हैं।वो भी वेतन लेकर मूछों पर ताव देते हैं। और ऐसे ही लोगो को हमेशा वेतन भी कम लगता है।और दिन भर नेतागिरी करके दिन काट देते हैं।जब भी कार्य और योग्यता के आधार पर वेतन निर्धारित किया जाता है तो ऐसे लोगों मे बिलबिलाहट लाजमी है, जो प्राईवेटाईजेशन मे होगा।यही कारण है विरोध का।
सिया राम मिश्र,
वरिष्ठ पत्रकार
प्रिन्ट एवं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया ।
उप संपादक
कंट्री इनसाइड न्यूज़ ।