कोई भी राष्ट्र सिर्फ राजनीतिक गतिविधियों से नहीं बनता। नौकरशाही की मंथर चाल से भी राष्ट्र नहीं बनता। राष्ट्र के निर्माण में बुद्धिजीवियों, समाजसेवियों, अर्थशास्त्रियों, शिक्षकों और कलाकारों की भी अति महत्वपूर्ण भूमिका होती है। कोरोना महामारी के वैश्विक प्रसार ने समाज के सभी वर्गों के जीवन पर प्रतिकूल असर डाला है। उद्योगपति, मजदूर, दुकानदार, कृषक, कंप्यूटरविद् जैसे सभी पुराने-नए पेशे के लोग कोरोना वायरस के चलते परेशान हुए हैं। सरकारी स्तर पर समाज के कई वर्गों के लिए ऐसी योजनाएं तैयार की गई जिससे कोरोना संकट काल में उनका कुछ भला हो सके। लेकिन, कुछ अपवादों को छोड़ दे तो, कला जगत के लिए अधिकतर सरकारी संस्थाओं द्वारा कोई भी विशेष प्रयास नहीं देखा गया। सरकारों ने मान लिया कि कलाकारों का बैंक बैलेंस बहुत बड़ा होता है। फिल्मी दुनिया और महानगरों में रह रहे कुछ कलाकार निश्चित रूप से बहुत ही समृद्ध हैं और कोरोना जैसे संकट काल में भी आठ-दस महीने बिना किसी कार्यक्रम में शिरकत लिए अपनी आजीविका चला सकने में सक्षम हैं। लेकिन, देश के चार-पांच करोड़ कलाकारों में 95% से अधिक संख्या ऐसे कलाकारों की है, जो एक-दो महीने भी बिना काम किए नहीं रह सकते।
आम दिनों में भी ग्रामीण और अर्द्धशहरी क्षेत्र के कलाकार इतना कम कमाते हैं कि मुश्किल से उनकी आजीविका चलती है। कभी-कभार बड़े आयोजनों में प्रस्तुति का अवसर मिल जाने पर भी उन्हें मेहनताना कम मिलता है।
शादी-विवाह और दूसरे सामाजिक संस्कारों तथा धार्मिक आयोजनों में कलाकारों को कुछ आमदनी हो जाती थी। लेकिन, कोरोना काल में तमाम तरह की बंदिशों को हटाने के बावजूद कला प्रदर्शनों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों के आयोजन पर लगी पाबंदियां यथावत हैं। शादी विवाह में भी पहले 50 व्यक्तियों के आने की अनुमति थी जिसे बढ़ाकर अब सौ व्यक्तियों तक कर दिया गया है। जाहिर है कि ऐसे आयोजनों में निकट संबंधियों और मित्रों को बुलाने में ही सौ का आंकड़ा पूरा हो जाता है। ऐसे में लोग कला से जुड़े कार्यक्रम करवाने में परहेज कर रहे हैं। इससे कलाकारों और विशेषकर लोक कलाकारों की स्थिति बहुत ही खराब हो गई है। ऐसे कलाकारों को तत्काल आर्थिक मदद पहुंचाए जाने की आवश्यकता थी, लेकिन लोक कलाकारों के प्रति उपेक्षा का भाव रखने वाली सरकारों ने इस दिशा में कोई पहल नहीं की। संस्कृति विभाग ने जरूर कुछ कलाकारों को वर्चुअल माध्यम से अपनी कला का प्रदर्शन करने का मौका दिया, जिसके एवज में उन्हें अल्प भुगतान भी किया गया। बिहार सरकार ने कलाकारों की मदद के लिए जो योजना बनाई उसके तहत सिर्फ ग्रामीण क्षेत्र के कलाकारों को 20 मिनट तक का वीडियो बनाकर भेजने पर ₹1000 देने की बात की गई। लेकिन, योजना की व्यवहारिकता और लालफीताशाही के कारण शायद ही किसी कलाकार को मदद मिल पाई। उत्तर प्रदेश सरकार ने अवश्य घोषणा की कि कलाकारों को वर्चुअल महोत्सव के लिए भी उसी प्रकार भुगतान किया जाएगा जैसे लाइव सांस्कृतिक कार्यक्रमों के लिए किया जाता है। लेकिन, यह योजना जमीन पर अच्छी तरह से लागू नहीं हो पाई। कुछ उत्साही युवा फेसबुक और दूसरे सोशल प्लेटफार्मों पर अपना चैनल बनाकर लोक कलाकारों को प्रस्तुति का अवसर दे रहे हैं, लेकिन इससे कलाकारों की रोजी-रोटी की समस्या हल नहीं हो रही। फलस्वरूप लोक कलाकार ऐसे कार्यक्रमों के प्रति उदासीन भी हुए, जिसे निश्चित रूप से गलत नहीं कहा जा सकता।
सरकारी और प्रशासनिक उदासीनता के कारण लोक कलाकार निराश हैं। सामाजिक और गैर सरकारी संस्थाओं द्वारा भी लोक कलाकारों के हितार्थ कुछ भी किया नहीं गया है। ऐसे में अनेक कलाकार रोजी-रोटी के लिए कलाकार से मजदूर बनने के लिए बाध्य हुए हैं । किसी भी देश या समाज के लिए निश्चित रूप से यह सुखद स्थिति नहीं है।
= नीतू कुमारी नवगीत बिहार की प्रसिद्ध लोक गायिका हैं।