पटना, १४ सितम्बर। हिन्दी दिवस के अवसर पर बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में आयोजित समारोह में, हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में मूल्यवान सेवाओं के किए, तीन पीढ़ियों के, १४ हिन्दी-सेवियों का सम्मान किया गया, जिसमें ९२ वर्षीय प्रो उपेन्द्र मिश्र और २१ वर्षीया नवयुवती वर्षा रानी सम्मिलित है। सभी सम्मानिता विदुषियों और विद्वानों को, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने अंग-वस्त्रम, प्रतीक-चिन्ह और प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित किया। सम्मानित होने वाले हिन्दी सेवियों में, वरिष्ठ साहित्यकार डा नीलम पाण्डेय, डा ध्रुब कुमार, डा रवी भूषण वर्मा, पं भावनाथ झा, डा अमरनाथ पाठक, ऋचा वर्मा, संजू शरण, शाइस्ता अंजुम, नलिनी रंजन, डा वीरेंद्र कुमार दत्त तथा राज किशोर झा. इस अवसर पर अपना विचार रखते हुए, न्यायमूर्ति प्रसाद ने कहा कि, जिस राष्ट्र की भाषा नहीं होती, वह देश मज़बूत नहीं हो सकता है। भारत की अबतक कोई राष्ट्रभाषा नही है, यह चिंता का विषय होना चाहिए। भारत की न्यायपालिका की भाषा भी अभी तक अंग्रेज़ी बनी हुई है। हिन्दी देश की सबसे लोकप्रिय भाषा है।इसे देश की राष्ट्रभाषा होनी चाहिए।
सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, १४ सितम्बर, १९४९ को भारत की संविधान सभा ने ‘हिन्दी’ को भारत संघ की ‘राजभाषा’ बनाने का निर्णय लिया। इसीलिए हम प्रत्येक १४ सितम्बर को ‘हिन्दी दिवस’ मनाते है। किंतु इस दुर्भाग्य से देश के कम लोग ही अवगत हैं कि, इसी तिथि को हिन्दी के दुर्भाग्य की कथा भी लिख दी गई। इसी निर्णय के, जो संविधान के अनुच्छेद -३४३ में वर्मित है, दूसरे प्रावधान में यह कहा गया कि “अगले १५ वर्षों तक ‘अंग्रेज़ी’ पूर्व की भाँति, संघ के कामकाज की भाषा बनी रहेगी”। इस तरह ‘हिन्दी’ को राजभाषा का स्थान, एक हाथ से देकर, दूसरे हाथ से छीन लिया गया। इस अनुच्छेद का तीसरा प्रावधान तो हिन्दी की छाती पर आज तक गड़ी हुई शूल सिद्ध हुआ, जिसमें यह कहा गया कि १५ वर्षों के पश्चात भारत की सरकार इस विषय में अधिनियम बनाकर यथोचित संशोधन करेगी। संशोधन हुआ । किंतु वह हिन्दी की हत्या के समान था। यह संशोधन हुआ कि जबतक देश की सभी प्रांतीय सरकारें यह नहीं कहेंगी कि हिन्दी देश की राज भाषा हो तबतक यथावत स्थिति बनी रहेगी। इस संशोधन ने हिन्दी की सारी संभावनाओं को समाप्त कर दिया। हिंदी दिवस पर देश को भारत की सरकार से पूछना चाहिए कि १४ सितम्बर का निर्णय कब पूरा होगा?
इस अवसर पर, सम्मेलन के उपाध्यक्ष दा शंकर प्रसाद, दा भूपेन्द्र कलसी, कुमार अनुपम, राज कुमार प्रेमी ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, डा मीना कुमारी, आनंद किशोर मिश्र, पं गणेश झा, नीता सिंहा आदी बदी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
कौशलेन्द्र की रिपोर्ट.