दिल्ली/चंडीगढ़. भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने मोदी कैबिनेट से अकाली दल की नेता हरसिमरत कौर बादल का इस्तीफा तत्काल प्रभाव से स्वीकार कर लिया है. राष्ट्रपति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सलाह-मशवरा करने के बाद इस्तीफा स्वीकार किया. संविधान के अनुच्छेद 75 के खंड (2) के तहत केंद्रीय मंत्री परिषद से हरसिमरत का इस्तीफा मंजूर किया गया है. राष्ट्रपति ने निर्देश दिया कि कैबिनेट मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर को उनके मौजूदा विभागों के अलावा खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्रालय का प्रभार भी सौंपा जाए.हरसिमरत कौर बादल ने किसान विरोधी अध्यादेशों के खिलाफ अपनी राय रखते हुए गुरुवार को मोदी कैबिनेट से इस्तीफा दे दिया था. उन्होंने ट्वीट कर इसकी जानकारी दी थी कि किसानों के साथ उनकी बेटी और बहन के रूप में खड़े होने का गर्व है. इसलिए उन्होंने यह फैसला इसलिए लिया है. क्योंकि बीजेपी की सहयोगी शिरोमणि अकाली दल अध्यादेश का विरोध कर रही है.कौन से अध्यादेशों का हो रहा विरोध?कृषि उत्पाद व्यापार और वाणिज्य (संवर्द्धन और सरलीकरण) अध्यादेश, किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) मूल्य आश्वासन समझौता और कृषि सेवा अध्यादेश और आवश्यक वस्तु (संशोधन) अध्यादेश गुरुवार को लोकसभा में पारित हो गए हैं. इन विधेयकों का विपक्षी पार्टियों समेत सत्तारूढ़ एनडीए के गठबंधन की पार्टी शिरोमणि अकाली दल भी कर रही है. अकाली दल केंद्र सरकार से समर्थन वापस लेने के पर सुखबीर सिंह बादल ने कहा है कि वह पार्टी की बैठक में इस बात का फैसला करेगी.क्या कह रही है सरकार?केंद्र सरकार ने बताया है कि ये विधेयक किसानों को उनकी उपज के लिए लाभकारी मूल्य दिलाना सुनिश्चित करेंगे और उन्हें निजी निवेश एवं प्रौद्योगिकी भी सुलभ हो सकेगी. केंद्र के मुताबिक प्रस्तावित कानून कृषि उपज के बाधा मुक्त व्यापार को सक्षम बनायेगा. साथ ही किसानों को अपनी पसंद के निवेशकों के साथ जुड़ने का मौका भी प्रदान करेगा. कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के मुताबिक लगभग 86 प्रतिशत किसानों के पास दो हेक्टेयर से कम की कृषि भूमि है और वे अक्सर न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का लाभ नहीं उठा पाते हैं. उन्होंने सदन को आश्वस्त किया कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बना रहेगा.किसान क्यों कर रहे हैं विरोध.इन अध्यादेशों का कई किसान संगठन इनका विरोध कर रहे हैं. किसानों ने आशंका जताई है कि इन अध्यादेशों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) प्रणाली को खत्म करने का रास्ता साफ होगा और वे बड़े कॉरपोरेट घरानों की ‘दया’ के भरोसे रह जाएंगे.
धीरेन्द्र वर्मा की रिपोर्ट.