हिन्दी की विदुषी और वरिष्ठ कथा-लेखिका ममता कालिया आज पटना के बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के फ़ेसबुक पटल पर लाइव थीं। उन्होंने कहा कि, मेरे पिताजी ने मुझे रामवृक्ष बेनिपुरी जी की पुस्तक ‘गेहूं और गुलाब’ पढ़ने को दिया था। मैं उसे पढ़कर चमत्कृत हो गई थी। उसमें गाँव की मधुर सुषमा है। श्रीमती कालिया ने कहा कि उस काल के साहित्यकार एक दूसरे के प्रति बड़ा सम्मान रखते थे। बेनिपुरी जी की एक पुस्तक पर, हिन्दी के महान कवि रामधारी सिंह ‘दिनकर’ ने लिखा था- “नाम तो मेरा दिनकर है, किंतु असली सूर्य तो बेनीपुरी हैं”। उन्होंने बहुत ही श्रद्धापूर्वक बाबा नागार्जून और फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ को स्मरण किया और अपने संस्मरण भी सुनाए। उन्होंने कहा कि बाबा प्रायः ही उनके घर पर आया करते थे और भोजन में ‘अँचार’ अवश्य माँगते थे। उनके आने से लगता था जैसे घर में कोई आदरणीय बुजुर्ग पधारे हैं। वे एक दम से पारिवारिक व्यक्ति हो जाते थे। बाबा और रेणु ने अपनी रचनाओं में ग्राम और ग्राम्य शब्दावली को सुंदर प्रयोग किया। उनके साहित्य में लोक-जीवन का आनंद है। रेणु जी ने हिन्दी-उपन्यास को नई भूमि प्रदान की।
उन्होंने अपनी एक रोचक कहानी का पाठ भी किया, जिसमें बिहार को जाने वाली रेलगाड़ी की अपनी यात्रा का रोचक-रोमांचक चित्र खींचा। आरंभ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने श्रीमती कालिया का सम्मेलन के पटल पर हार्दिकता से स्वागत किया और पटल से जुडे सभी सुधी साहित्यकारों एवं साहित्य-प्रेमियों के प्रति आभार प्रकट किया।
संजय राय की रिपोर्ट.