पटना, २३ सितम्बर। “चिंतकों और कवियों के वर्ष ‘शताब्दियों अथवा अर्द्ध-शताब्दियों में गिने जाते हैं। और, इसकी भी क्या चिंता कि स्थूल मनुष्य की ओर से पीटे जाने वाले भीषण पटह के विकराल रोर में हमारी पतली आवाज़ डूब जाती है? हमें इस विश्वास के साथ आगे बढ़ते जाना है कि यह पतली आवाज़ दुनिया की अमर आशा की आवाज़ है और यही पतली आवाज़ एक दिन सारे विश्व की आवाज़ बनेगी जब प्रत्येक स्थूल मनुष्य पटह फेंक कर कोई मुरली उठा लेगा”। यह बात आज से ६४ वर्ष पूर्व राष्ट्रकवि दिनकर ने बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के रजत जयंती समारोह के सभापति के रूप में अपने उदबोधन में कही थी। उन्हें विश्वास था कि संसार में एक समय ऐसा आएगा जब प्रत्येक व्यक्ति युद्ध की बात छोड़कर शांति और प्रेम का गीत गाएगा, युद्ध की दुदुंभी के स्थान पर कृष्ण की बंशी बजाएगा।
बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में बुधवार की संध्या आयोजित जयंती समारोह और कवी-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, ये बातें सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि ‘दिनकर’ आज और भी प्रासंगिक लगते हैं। ‘दिनकर’ ओज के, किंतु मानवतावादी राष्ट्र-कवि थे। वे सही अर्थों में अपने समय के ‘सूर्य’ थे। वे नेहरु जी के अत्यंत निकट थे। वे तीन कार्य-कालों तक राज्यसभा के सदस्य भी रहे और उन्हें भारत सरकार ने ‘पद्म-भूषण’ अलंकरण से भी सम्मानित किया।
राष्ट्रकवि के पौत्र अरविंद कुमार सिंह ने अपने संस्मरणों को साझा करते हुए कहा कि दिनकर जी का साहित्यिक व्यक्तित्व ही नहीं उनका सांस्कृतिक व्यक्तित्व भी महान है। वे एक मनीषी सांस्कृति-पूरुष थे। उन्होंने राष्ट्र्कवि की सुप्रसिद्ध रचना ‘किस को नमन करूँ मैं’ का भी पाठ किया।
सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा कल्याणी कुसुम सिंह, अंबरीष कांत तथा आनंद किशोर मिश्र ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि पं गणेश झा, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, डा शालिनी पाण्डेय, जय प्रकाश पुजारी, गोपाल भारतीय तथा डा विनय कुमार विष्णुपुरी आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। डा एच पी सिंह, प्रणब समाजदार, नरेंद्र कुमार झा, अमित कुमार सिंह, रामसूरत सिंह आदि अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।