पटना, २८ सितम्बर। संत साहित्य के मर्मज्ञ आचार्य थे डा धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री। वे साहित्य में शोध और अनुशीलन के आदर्श-पूरुष थे। उनका संपूर्ण जीवन तपश्चर्या का पर्याय था।साहित्य में शोध की दृष्टि से आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी शास्त्री का योगदान अविस्मरणीय है। प्राचीन हस्तलिखित पांडुलिपियों पर किए गए उनके कार्य, साहित्य-संसार की धरोहर हैं। यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। उन्होंने कहा कि, राष्ट्रभाषा परिषद द्वारा प्रकाशित उनकी शोध-पुस्तक विश्व के ३० बड़े विश्वविद्यालयों में उपलब्ध है, जिनके पुस्तकालयों में उसका उपयोग शोधार्थियों द्वारा संदर्भ-ग्रंथ के रूप में किया जा रहा है। इस वर्ष का आचार्य धर्मेंद्र ब्रह्मचारी स्मृति सम्मान, छपरा के युवा साहित्यकार डा चंद्रशेखर कुशवाहा को प्रदान किया गया। डा सुलभ ने उन्हें प्रशस्ति-पत्र, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह तथा पुष्प-हार पहनाकर सम्मानित किया। उन्होंने सम्मेलन-भवन के निर्माण में महत्तम सहयोग देने वाले, सम्मेलन के पूर्व अध्यक्ष तथा बनैली-राज के स्वामी राजाबहादुर कीर्त्यानंद सिंह को भी श्रद्धापूर्वक स्मरण किया। आज उनकी भी जयंती है। डा सुलभ ने उन्हें कला,संगीत और साहित्य का महान संरक्षक बताया। उन्होंने कहा कि बनैली-राज की कीर्ति दूर-दूर तक उनके अवदानों के कारण फैली। उन्होंने साहित्य सम्मेलन भवन के निर्माण में दस हज़ार रूपए की राशि उस समय दी थी, जब यह देश स्वतंत्र भी नहीं हुआ था। वे स्वयं एक कवि भी थे और उनका दरबार कवियों से सुशोभित रहता था। आज उनके जैसे उदार दानियों और संस्कृति-संरक्षकों का अकाल पड़ गया है। यही कारण है कि, आज ये सारस्वत प्रवृतियाँ समाज में हासिए पर चली जा रही हैं। आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए,सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, कीर्त्यांन्द सिंह स्वयं एक बड़े कवि और साहित्यानुरागी थे। उनके परिसर में प्रायः हीं कवि-सम्मेलन और साहित्यिक गोष्ठियाँ होती थी। वे उदारता के साथ कवियों को सम्मानित और पुरस्कृत करते थे। वे कवियों को प्रत्येक कविता पर सोने की अशर्फ़ी दिया करते थे।इस अवसर पर वरिष्ठ कवी राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, चंदा मिश्र, श्रीकांत व्यास, राम सूरत सिंह, रामाशीष ठाकुर, अरविंद कुमार, भूपेन्द्र पाण्डेय, अमित कुमार सिंह आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए।मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।