पटना, ३ अक्टूबर । महाकाव्य ‘महाशक्ति’, ‘मेनका’, ‘रास-रचैया’, ‘जागरी वसुंधरा’, ‘धरती की पुकार पर’, ‘आह्वान’, ‘गतिगंधा’, ‘गीति-काव्य’, ‘जीवन-संदेश’, ‘कवि और कविता’, ‘अवदान’ जैसी कालजयी कृतियों के महाकवि ब्रजनंदन सहाय ‘मोहन प्रेमयोगी’, यश की लालसा से दूर निरंतर एकांतिक साधना में लीन रहने वाले एक ऐसे मनीषी साहित्यकार थे, जिन्हें हिन्दी काव्य के छायावाद और उत्तर-छायावाद के संधि पर स्थित प्रकाश-स्तम्भ कहा जा सकता है। वे तपस्वी थे। प्रचार से स्वयं को सदा दूर हीं रखा। इसीलिए समीक्षकों की दृष्टि से भी अलक्षित रह गए। किंतु जिस किसी ने भी उन्हें पढ़ा, वह उनकी सारस्वत-प्रतिभा और विद्वता से प्रभावित हुए विना रह न सका। उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य को समृद्ध बनाने में बड़ा योगदान दिया। उनके ३० प्रकाशित ग्रंथ हिन्दी को दिया गया अमूल्य उपहार है। काव्य-ग्रंथों के अतिरिक्त उन्होंने ‘भारतीय मनीषा में ईश्वरवाद’ और ‘भारतीय प्रजातंत्र एवं प्रशासन’ जैसे चिंतन-प्रधान गद्य ग्रंथ भी लिखे, जो उनकी विद्वता के परिचायक हैं। वे सौम्यता, सरलता और विनम्रता के मूर्त रूप थे। उनका विपुल साहित्य पीढ़ियों का मार्ग-दर्शन करता रहेगा।
शनिवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में महाकवि की जयंती पर आयोजित सम्मानसमारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने ये बातें कहीं। डा सुलभ ने कहा कि प्रेमयोगी जी समकालीन साहित्य के एक महान कवि थे, आने वाली पीढ़ियाँ जब उन्हें पढ़ेंगी, समझेंगी और उनके विचारों को अपने में ढालेंगी, तभी उनका सही मूल्यांकन हो सकेगा। यह एक कटु सत्य है कि कवियों को समझने में, समाज को सदियाँ लग जाती हैं।
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि, लेखक और साहित्यिक पत्रिका ‘संझा बाती’ के संपादक हेमंत कुमार को वर्ष २०२० का ‘महाकवि ब्रजनंदन सहाय ‘मोहन प्रेमयोगी’ स्मृति-सम्मान से विभूषित किया गया। सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने सम्मान स्वरूप पाँच हज़ार एक सौ रूपए की राशि, वंदन-वस्त्र, प्रशस्ति-पत्र, स्मृति-चिन्ह तथा पुष्प-हार प्रदान कर उन्हें सम्मानित किया।
महाकवि के विद्वान पुत्र डा योगेशचंद्र सहाय ने कहा कि प्रेमयोगी जी संपूर्ण विश्व में हिन्दी के विस्तार के पक्षधर थे। इस हेतु निरंतर सक्रिए भी रहे। उन्होंने ‘विश्व हिन्दी संवर्द्धन समिति’ की भी स्थापना की थी, जिसके माध्यम से हिन्दी के लिए कार्य कर रहे विद्वानों को जोड़ने की चेष्टा की। वे साहित्य सम्मेलन के भी संरक्षक सदस्य थे। उन्होंने महाकवि की वाणी-वंदना “माँ शरदें! विमलांबरे ! आनंद सिंधु विलासिनी!”का भी सस्वर पाठ किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी-वंदना से हुआ।
वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने इस मधुर गीत को स्वर दिया कि, “गंगा की उर्मिल लहरें/ कुछ कहती बहते-बहते/स्वच्छ बने यह भूतल/ समदर्शी हर एक दृष्टि पल/ पावनता का जन-मन हो/ मधुमास रचा तन-मन हो!”
आज के सम्मानित कवि हेमंत कुमार ने सस्वर निवेदन किया कि, “मेरे गीत सुन लो मितवा! फिर चले जाना/ न जाने तेरी महफ़िल में, कब हो मेरा आना”। कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, बाँके बिहारी साव, डा कुंदन कुमार तथा अर्जुन कुमार सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। इस अवसर पर महाकवि की पुत्रवधु रुपम सहाय, विपुल कुमार, राम प्रसाद ठाकुर, रवि रंजन, अमित कुमार सिंह और प्रणब समाजदार भी उपस्थित रहे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।