पटना, ११ अक्टूबर। विभिन्न काव्य-रसों से आप्लावित कंठ-घट से देश के पाँच काव्य-साधकों ने कला की अधिष्ठात्री देवी वाणी को काव्य-पंचामृत अर्पित की, जिसका प्रसाद सैकड़ों की संख्या में पटल से जुड़े, सरस्वती-आराधकों एवं काव्य-रसिकों ने प्राप्त किया। यह काव्योत्सव बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में, ज़ूम मीट पर आयोजित किया गया था। उत्सव का आरंभ देश के सुविख्यात कवि और अखिल भारती भाषा संस्कृति समन्वय समिति के अध्यक्ष पं सुरेश नीरव ने वाणी-वंदना से हुआ। उन्होंने पंचामृत-पात्र में अपने भावों का मधु मिश्रित करते हुए इस छंद को स्वर दिया कि “श्लोक अधर, मंत्र सी आँखें, देवालय सा तन / रामायण सा रूप तुम्हारा सांसें वृंदावन/ मौलश्री की छांव के नीचे तुम ऐसी दिखती हो/ भोजपत्र पर जैसे कोई वेद-ऋचा लिखती हो/ जब से दरस तुम्हारा पाया हुआ तथागत मन”।रायपुर से अपने सुरीले स्वर से काव्य-पाठ करती हुई कवयित्री नीलू मेघ ने रस की ऐसी वर्षा की, कि पूरा काव्य-पटल तीर्थ सा पावन हो गया। पंचामृत मात्र में मधु डालते हुए उन्होंने इस छंद को मधुर स्वर दिया कि “एक राजा एक रानी/ गढ़ रहे दोनों कहानी/ रेत जैसे झार रहे हैं/ हम श्रमिक थे स्वाभिमानी”।मुंबई से चर्चित कवि और संचारविद पुरुषोत्तम नारायान सिंह ने धवल दुग्ध अर्पित किया और समाज के दर्द का बयान इन पंक्तियों में किया कि “एक परिंदा अभी उड़ान में है/ तीर हर शख़्स की कमान में है/ ज़िंदगी की ढेर पर बैठा है जिस्म/ रूह की नज़र मगर श्मशान में है”,गढ़वाल से लाइव रहे पंचामृत के तीसरे कवि डा राकेश जुगरान ने अपने इस गीत में ‘कविता’ को समझने की चेष्टा की – “सिर्फ़ नहीं लय, छंद, ताल या शब्दों का ताना-बाना/ जब समझा, महसूस किया, है इसके रंग विविध नाना/ सुंदर कोई तराना तब माइने कविता को जाना”।अंत में आयोजन और सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने प्रेम का गंगाजल अर्पित कर पंचामृत प्रस्तुत की और प्रेम में ही डूबी,पगी अपनी रचना ‘नयन मिले हैं जब से उनसे, क्या हुई है बात! मंत्र भारित हो गए हैं हर एक दिन हर रात’ का सस्वर पाठ किया। उन्होंने कहा कि भारतीय वांगमय में, ‘प्रेम’ को मानव-जीवन का पाँचवाँ ‘पुरुषार्थ’ कहा गया है। यही संपूर्ण वसुधा का मूल आधार और अभिव्यक्ति है। इसके अभाव में जीवन की कल्पना नही की जा सकती। सात्विक प्रेम का मानव-मन पर सर्वाधिक और गहरा प्रभाव पड़ता है, जिससे जीवन-दिशा बदल सकती है। उन्होंने प्रेम के प्रभाव को समझने के लिए पंक्तियों को स्वर दिया कि ‘एक स्वर वीणा का हर क्षण गूँजित हो रहा है/ एक रस मधुमास का तन मन को भिगो रहा/ संध्या सुंदरी बाँहों में भर करती रात को प्रात! मंत्र भारित हो गए हैं, हर एक दिन हर रात !”