पटना, ३० अक्टूबर। “सुंदर सुभूमि भैया भारत के देसबा से मोरे प्राण बसे हिम खोह रे बटोहिया” जैसी प्राण-प्रवाही और मर्म-स्पर्शी रचना के अमर रचयिता बाबू रघुवीर नारायण भोजपुरी और हिंदी के महान कवि हीं नहीं एक वलिदानी देश-भक्त और स्वतंत्रता सेनानी भी थे। ‘बटोहिया-गीत’ से अत्यंत लोकप्रिय हुए इस महान कवि ने घूम-घूम कर देश में स्वतंत्रता का अलख-जगाया और यह गीत गा-गा कर, संपूर्ण भारत-वासियों को, विशेष कर समग्र पूर्वांचल को, उसकी गौरवशाली प्राचीन संस्कृति और महानता का स्मरण दिलाया। पूर्वी-धुन पर रचित यह गीत अपने काल में बिहार और उत्तरप्रदेश के स्वतंत्रता-सेनानियों के जिह्वा पर देश का ‘राष्ट्रीय-गीत’ की तरह चढ़ा रहा। पूर्वी भारत में आज भी इसकी मान्यता राष्ट्रीय लोक गीत के रूप में है।
यह बातें शुक्रवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, बाबू रघुवीर नारायण की १३७वीं जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, एक भी महान और लोकप्रिय रचना किसी व्यक्ति को साहित्य-संसार में अमर कर सकती है, ‘बटोहिया गीत’ और बाबू रघुवीर नारायण इसके प्रज्वल उदाहरण हैं। आज के कवियों के लिए यह अत्यंत मूल्यवान दृष्टांत है।
इस अवसर पर युवा साहित्यकार डा राकेश कुमार कश्यप को बाबू रघुवीर नारायण स्मृति समान से विभूषित किया गया। समारोह के उद्घाटन करता और विश्वविद्यालय सेवा आयोग, बिहार के अध्यक्ष डा राज वर्द्धन आज़ाद ने अंग-वस्त्रम तथा प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया। डा कुमारी प्रियंका को डा ललितांशुमयी स्मृति सम्मान प्रदान किया गया। अपने उद्गार में डा आज़ाद ने कहा कि बिहार की भूमि बड़ी उर्वरा है। वह साहित्य का क्षेत्र हो या ज्ञान-विज्ञान का कोई भी क्षेत्र बिहार का बड़ा योगदान रहा है। रघुवीर नारायण देश की एक बड़ी साहित्यिक विभूति थे। इनके लिए और इनके जैसी महान विभूतियों की स्मृति को चिरकालीन बनाए जाने का प्रयत्न करना चाहिए।
कार्यक्रम का आरंभ, आकाशवाणी-दूरदर्शन के वरिष्ठ गायक रवि शंकर सिन्हा ने ‘बटोहिया-गीत’ का सस्वर पाठ कर किया। बाबू रघुवीर नारायण के पौत्र प्रताप नारायण ने अपना उद्गार व्यक्त करते हुए कहा कि रघुवीर नारायण जी ने अंग्रेज़ी, हिन्दी और भोजपुरी के बड़े कवि थे और उनकी समस्त रचनाओं का मूल स्वर देशभक्ति और अध्यात्म था। उन्होंने सरकार से मांग की, कि बिहार के विद्यालयों में ‘बटोहिया गीत’को पाठ्यक्रम में सम्मिलित किया जाए। कवि की पौत्र-वधु उर्मिला नारायण ने श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उनके जीवन से जुड़े महत्त्वपूर्ण प्रसंगों की विस्तार से चर्चा की और कहा कि, भोजपुरी भाषी क्षेत्रों में राष्ट्रीयता का भाव जगाने तथा जन-जागरण में, ‘बटोहिया-गीत’ की बड़ी भूमिका रही। इस गीत की चर्चा मौरिशस, सूरिनाम, फ़ीजी, त्रिनिदाद, टोबैगो तक पहुँची, और वहाँ के लोग भाव-विभोर होकर यह गीत सुना करते थे। उन्होंने महात्मा गांधी और नेहरु जी को भी यह गीत सुनाया था। गांधी जी आग्रह पूर्वक इसे सुना करते थे। उनकी आँखें भर आती थी। उनके सारस्वत गुणों से प्रभावित होकर बनैली के महाराज कीर्त्यानंद सिंह ने उन्हें अपना निजी सचिव बना रखा था। उन्हीं की प्रेरणा से कीर्त्यानंद जी ने साहित्य सम्मेलन के भवन के निर्माण में एक मुश्त दस हज़ार रूपए की राशि प्रदान की थी।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, कवि राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, डा पंकज प्रियम, डा कल्याण कुमार झा, डा सविता मिश्र ‘मागधी’, अर्जुन सिंह, डा कुंडन कुमार सिंह, बाँके बिहारी साव आदि कवियों ने अपने प्रभावशाली काव्य-पाठ से कवि-सम्मेलन को रसपूर्ण बनाया। रघुवीर नारायण जी की परपौत्री नूपुर सहाय, अरुण कुमार झा, पारसनाथ मिश्र, अमर सहाय, अमित नारायण, रजनी नारायण, अविनय काशीनाथ पाण्डेय समेत बड़ी संख्या में प्रबुद्धजन उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।