जयंती पर डा उमा शंकर सिंह तथा डा मिथिलेश चंद्र मुकुल को दिया गया स्मृति-सम्मान, दी गई काव्यांजलि
पटना। स्मृतिशेष कवि डा सीताराम ‘दीन’ संतकवि सद्ग़ुरु कबीर की परंपरा के अत्यंत मूल्यवान और मनीषी कवि थे। वे कबीर साहित्य के विद्वान मर्मज्ञ और बड़े अध्येता थे। उनके काव्य-साहित्य में स्थान-स्थान पर कबीर का स्वर गुंजित होता दिखाई देता है। दूसरी ओर सूर्यपुरा-स्टेट के स्वामी और महान हिन्दी-सेवी उदयराज सिंह एक ऐसे साहित्यकार थे, जिन्होंने खड़ी बोली की साहित्यिक पत्रकारिता को कई नए आयाम दिए। किशोर वय से ही हिन्दी की सेवा में रत राजा साहेब ने छात्र-जीवन मेन ही दो हस्त-लिखित पत्रिकाओं का प्रकाशन और संपादन आरंभ कर दिया था। साहित्यिक पत्रिका ‘नईधारा’ के वे ही जन्मदाता थे।यह बातें बुधवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में, ‘दीन’ जी तथा उडराज सिंह जी के संयुक्त जयंती-समारोह एवं कवि सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, दीन जी एक संघर्षशील हीं नहीं संघर्ष-जयी दिव्य-पुरुष थे। उन्होंने अपनी कठिन तपस्या और श्रम से, अपने स्वाभिमान की सतत रक्षा करते हुए, किसी का उपकार लिए बिना, अपने स्वयं का तथा अपने अंतर में स्थित महान कवि का निर्माण किया था। उन्होंने अपने पुरुषार्थ और प्रतिभा से ज्ञान अर्जित किया और एक आदरणीय प्राध्यापक तथा मनीषी साहित्यकार सिद्ध हुए। साहित्य सम्मेलन से भी इनका गहरा संबंध रहा। उन्होंने सम्मेलन के साहित्य-मंत्री के रूप में अनेक वर्षों तक अपनी मूल्यवान सेवाएँ दीं। उनके गीतों का स्वर मानवतावादी है। उनके विचार क्रांतिकारी थे, जो रूढ़ियों पर गहरा प्रहार करते हैं। इस अवसर पर साहित्य-सेवी डा उमाशंकर सिंह को ‘डा सीताराम दीन स्मृति-सम्मान’ तथा दा मिथिलेश चंद्र मुकुल को ‘उदयराज सिंह स्मृति-सम्मान से अलंकृत किया गया। दोनों ही युवा हिंदी-सेवियों को दा सुलभ ने अभिनंदन-वस्त्र, पुष्प-हार एवं प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया।
इसके पूर्व अतिथियों का स्वागत करते हुए,सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि, दीन जी जितने बड़े कवि थे, उतने हीं विनम्र और प्रेम-भाव से ओत-प्रोत थे। साहित्यिकों के प्रति उनका आदर-भाव अनुकरणीय है।
सम्मेलन की कला मंत्री डा पल्लवी विश्वास, श्री हरिमंदिर साहिब गुरुद्वारा प्रबंधक कमिटि, पटना सिटी के महासचिव सरदार महेंद्रपाल सिंह ढ़िल्लन, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रो सुशील झा, डा मेहता नगेंद्र सिंह तथा आनंद मोहन झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, अमलेन्दु अस्थाना, डा शालिनी पांडेय, डा अर्चना त्रिपाठी, डा करुणा पीटर ‘कमल’, चित रंजन लाल भारती, पं गणेश झा, इन्दु उपाध्याय, माधुरी भट्ट, भारती मिश्र, डा उमा शंकर सिंह आदि कवियों ने अपनी रचनाओं से कवि-सम्मेलन को स्मरणीय बना दिया। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।