पटना, ८ नवम्बर। अत्यंत प्रतिभा-संपन्न और विदुषी साहित्यकार थीं गिरिजा बरनवाल महाकवि हज़ारी प्रसाद द्विवेदी, आचार्य विश्वनाथ मिश्र और डा नामवर सिंह जैसे महान साहित्यकारों और आचार्यों की छात्रा रहीं श्रीमती बरनवाल, एक पीयूष-वाहिका कवयित्री थीं। बनारस हिंदू विश्वविद्यालय से स्वर्ण-पदक के साथ स्नातकोत्तर की उपाधि प्राप्त की थीं। उनकी रचनाओं में उनकी प्रतिभा और विद्वता की स्पष्ट झलक मिलती है। उनकी विनम्रता और उनका आंतरिक सौंदर्य,उनके विचारों और व्यवहार में स्पष्ट परिलक्षित होता था। उनके व्याख्यान भी अत्यंत प्रभावकारी होते थे। उनके मुख-कमल पर सदैव आनंद की स्मित आभा खेलती रहती थी।यह विचार आज यहाँ बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में आयोजित पुण्य-स्मृति समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन-अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने व्यक्त किए। डा सुलभ ने कहा कि,गिरिजा जी एक विदुषी समालोचक भी थीं। उनकी मूल्यवान साहित्य-सेवा के लिए,बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन द्वारा उन्हें ‘कुमारी राधा स्मृति हिन्दी-सेवी सम्मान’ से विभूषित किया गया था।इस अवसर पर डा सुलभ ने डा रचना चौहान को ‘विदुषी गिरिजा बरनवाल स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया। उन्होंने साहित्यिक त्रैमासिक ‘नया भाषा भारती संवाद’ के २१वें वर्ष के प्रथमांक का लोकार्पण भी किया।अतिथियों का स्वागत करते हुए, सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि लोकार्पित पत्रिका अपनी मूल्यवान सामग्री और विदवतापूर्ण आलेखों के कारण संपूर्ण भारतवर्ष में प्रशंसित और लोकप्रिय हो रही है। इसमें संपूर्ण भारतवर्ष में हो रही साहित्यिक गतिविधियों की सूचनाएँ भी मिलती हैं।पत्रिका के प्रधान संपादक और श्रीमती वरणवाल के पति नृपेंद्रनाथ गुप्त ने कहा कि हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में ‘नया भाषा भारती संवाद’ २१ वर्षों से अपना योगदान दे रही है। उन्होंने कहा कि जब तक उनका जीवन रहेगा वे इस पत्रिका को निरंतर प्रकाशित करते रहेंगे और ऐसी व्यवस्था कर जाएँगे, जिससे कि यह कभी बंद न हो और इसकी निरंतरता बनी रहे।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, प्रो वासुकी नाथ झा, कुमार अनुपम, डा सुधा सिन्हा, डा अर्चना त्रिपाठी, राज कुमार प्रेमी, चंदा मिश्र,डा गौरीनाथ राय, पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, डा पुष्पा जमुआर, अनिल रश्मि डा मनोज कुमार, डा विधु शेखर पाण्डेय, प्रेमलता सिंह,अशोक कुमार, डा रेखा झा, बाँके बिहारी साव, डा पुष्पा कुमारी, चितरंजन लाल भारती, अर्जुन प्रसाद सिंह तथा प्रो सूखित वर्मा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए।मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।