पटना /दिल्ली. बिहार विधानसभा चुनाव के परिणामों को देखते हुए हम कह सकते हैं कि एक बार फिर से एक्जिट पोल की साख दांव पर लग गई है. पिछले छह विधानसभा चुनावों में ज्यादातर एक्जिट पोल गलत साबित हुए हैं. बिहार मे सभी मीडिया हाउस ने तेजस्वी यादव के नेतृत्व वाले महागठबंधन को 180 सीटें मिलने काअनुमान लगाया था, लेकिन होता इसके वितरीत नजर आ रहा रहा है. नीतीश कुमार के नेतृत्व वाला एनडीए 130 सीट पर पहुंचता नजर आ रहा है.एग्जिट पोल पहले भी कई बार गलत साबित हुए हैं. इसकी विश्वसनीयता पर सवाल उठते रहे हैं. पिछले दिनों सोशल मीडिया में ये बात वायरल हो रही थी कि ‘रोज़ाना कोई न कोई सर्वे ज़रूर आता है. लेकिन अब तक कोई सर्वे वाला मुझसे पूछने नहीं आया.’ तो क्या ये मान लिया जाए कि ये रायशुमारी फर्ज़ी होती हैं. क्या इसकी उपयोगिता सिर्फ सोशल मीडिया और टीवी चैनल्स पर बहस के लिए होती है? क्योंकि इससे पहले गुजरात, हिमाचल, हरियाणा (Haryana), यूपी, पंजाब और दिल्ली चुनाव में भी एग्जिट पोल ने मुंह की खाई है. एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियां दावा करती हैं कि एग्जिट पोल लोगों की राय होते हैं. लेकिन हकीकत ये है कि ये अक्सर सही साबित नहीं होते. यूपी विधानसभा चुनाव की ही बात कर लीजिए. क्या कोई एजेंसी कह रही थी कि बीजेपी को 324 सीटें मिलेंगी? कोई बता रहा था क्या कि दिल्ली में अरविंद केजरीवाल की आम आदमी पार्टी 70 में से 67 सीटों पर जीत जाएगी. या फिर 2014 और 2019 में कोई बता रहा था कि बीजेपी की आंधी में कई पार्टियों का खाता तक नहीं खुलेगा. 2015 के बिहार विधानसभा चुनाव में भी एग्जिट पोल गच्चा खा चुका है.राजनीतिक के जानकर डॉ. संजीव सिंह का मानना है कि ‘एग्जिट पोल फर्ज़ी तो नहीं होते, लेकिन इनके सैंपल साइज छोटे होने की वजह से सवाल उठते रहते हैं. सवाल ये कि क्या कोई एजेंसी सिर्फ पांच, 10 और 50 हजार लोगों से बात करके पूरे राज्य की नब्ज़ टटोल सकती है?’दरअसल भारत का वोटर उतना मुखर नहीं है जितना कि विकसित देशों का वोटर. वो कहीं बीजेपी से डरता है, कहीं कांग्रेस और कहीं एसपी, बीएसपी, आरजेडी से. इसलिए वो सही बात नहीं बताता. इसलिए अब तक एग्जिट पोल अपनी साख नहीं बना पाए.इसके लिए जनगणना की प्रोफाइल से मैच करता हुआ सर्वे होना चाहिए. यानी आपके सर्वे में हिंदू, मुस्लिम, सिख, इसाई, महिलाएं, दलित, ओबीसी, जनजाति, गांव और शहर हर श्रेणी के मतदाता उसी अनुपात में होने चाहिए, जितने प्रतिशत वो उस राज्य में हैं. इसके लिए सर्वे में शामिल लोगों की सोशल प्रोफाइल बनती है. जिसके सर्वे में इसकी जितनी समानता होगी वो उतना ही सही होगा.कंट्री का कहना है.कंट्री इनसाइड न्यूज़ के मैनेजिंग एडिटर कौशलेन्द्र ने अपने साथियो को बधाई दी जिन्होंने एग्जिट पोल करने में मदद की.एग्जिट पोल एजेंसियां महिलाओं की नब्ज टटोलने में नाकाम रहीं. जबकि साइलेंट वोटर की भूमिका अहम रही है. महादलित, अति पिछड़ा जो ज्यादा मुखर नहीं है, शायद उनसे सर्वे वालों ने बात नहीं की. महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले ज्यादा वोटिंग की है. उनका ज्यादातर वोट नीतीश कुमार के पक्ष में गया है, क्योंकि शराबबंदी की वजह से सबसे ज्यादा सुकून उन्हें ही मिला है. नीतीश कुमार ने ग्राम पंचायत में 50 फीसदी आरक्षण दिया है.
कौशलेन्द्र की रिपोर्ट.