पटना, १० नवम्बर। बिहार के प्रथम शिक्षामंत्री आचार्य बदरी नाथ वर्मा का व्यक्तित्व अत्यंत महनीय और बहु आयामी था। वे अपने समय के महान साहित्य-सेवी, पत्रकार, प्राध्यापक, स्वतंत्रता सेनानी और राजनेता थे। वे शिक्षा और साहित्य ही नहीं राजनीति के भी आदर्श-पूरुष थे। उन्हें राजनीति में एक सशक्त साहित्यिक हस्तक्षेप के रूप में सदा स्मरण किया जाता रहेगा। दूसरी ओर महान शिक्षाविद डा सच्चिदानंद सिन्हा तो बिहार के जनक हीं थे। बंग-भंग का आंदोलन उन्होंने हीं आरंभ किया था। बिहार एक अलग राज्य हो इस आंदोलन के सफल प्रणेता थे सच्चिदा बाबू। यह विचार आज यहाँ साहित्य सम्मेलन में आयोजित संयुक्त जयंती-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, बदरी बाबू पर राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी और महान राजनीति शास्त्री आचार्य चाणक्य का गहरा प्रभाव था। उन्होंने चाणक्य के जीवन से यह सीखा था कि, राज-कोश के धन का, निजी कार्य में, एक बूँद तेल के लिए भी व्यय नही करना चाहिए। राज्य के शिक्षा विभाग समेत अन्य विभागों के मंत्री रहते हुए उन्होंने इसका अक्षरश: पालन किया। शासन का कुछ भी नही लिया। आवास भी नहीं। मीठापुर स्थित अपने अत्यंत साधारण खपरैल घर में रहे, किंतु सरकारी आवास नहीं लिया। उन्होंने कहा कि, डा सच्चिदानंद सिन्हा को, जिन्होंने ‘बिहार’ को अलग राज्य बनाने की माँग उठाई, उसके लिए संघर्ष किया, जिसने बंग-भंग कराकर ‘बिहार’ को अलग अस्तित्व दिलाया, जो भारत की संविधान-सभा के प्रथम अध्यक्ष हुए, जिन्होंने चार-चार महाराजाओं को चुनाव में पराजित कर केंद्रीय ऐसेंब्लि में अपनी जगह बनाई, बिहार के लोग भूलते जा रहे हैं। इस अवसर पर युवा हिन्दी-सेवियों सुरजीत बिहारी तथा शशि कुमार पासवान को क्रमशः ‘डा सच्चिदानंद सिन्हा स्मृति-सम्मान’ तथा ‘आचार्य बदरीनाथ वर्मा स्मृति सम्मान’ से विभूषित किया गया। आज ही प्राध्यापिका डा कुमारी रेखा को ‘किशोरी चतुर्वेदी स्मृति सम्मान’, डा आभा रानी को ‘सुधा कर्ण स्मृति सम्मान, डा रेखा कुमारी झा को ‘प्रो शांता सिन्हा स्मृति सम्मान’ तथा डा रोज़ी कुमारी को ‘डा वीणा कर्ण स्मृति सम्मान’ से अलंकृत किया गया। आरंभ में अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन की साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि, वर्मा जी अंग्रेज़ी के प्राध्यापक थे, किन्तु हिन्दी के लिए जो कार्य उन्होंने किया वह अतुल्य है। गांधी जी के आह्वान पर उन्होंने सरकार की प्राध्यापकी छोड़ कर ‘बिहार विद्यापीठ’ में निःशुल्क अध्यापन करते रहे। वे जीवन पर्यन्त विद्यापीठ के मंत्री रहे। वर्मा जी साहित्य सम्मेलन से इसकी स्थापना के काल से ही जुड़े रहे। सम्मेलन-पत्रिका ‘साहित्य’ का वर्षों संपादन किया। डा अखिलेश कुमार, डा गौरी नाथ राय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी तथा प्रो सुशील कुमार झा ने भी विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर, आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, राज कुमार प्रेमी, डा अर्चना त्रिपाठी, चित रंजन लाल भारती, जयशंकर पुजारी, अरविन्द कुमार, लता प्रासर, नेहाल कुमार सिंह तथा अर्जुन सिंह ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।