पटना, १२ नवम्बर। साहित्य के पर्यायवाची शब्द थे, आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव। उनके संपूर्ण व्यक्तित्व से ‘साहित्य’ टपकता था। भारतीय वांगमय में,साहित्यकार को लेकर एक अनूठी कल्पना है, कि कोई साहित्यकार चले, तो लगे कि ‘साहित्य’ चल रहा है, वह कुछ बोले तो लगे कि साहित्य ने कुछ कहा है और वह मुस्कुराए तो लगे कि, साहित्य ने आनंद की अभिव्यक्ति की है। उसी आदर्श कल्पना के साकार रूप थे सूरिदेव जी। जीवन पर्यन्त, अपनी आयु के ९४वें वर्ष में भी,अनवरत लिखते रहे। लगभग ७५ साल की उनकी अद्वितीय साहित्यिक साधना एक कीर्तिमान की तरह है।
यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, विश्रुत बहुभाषाविद विद्वान आचार्य श्रीरंजन सूरिदेव के तृतीय पुण्य-स्मृति-समारोह की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, आचार्य जी ने दो दर्जन से अधिक पुस्तकें लिखी। सैकड़ों पुस्तकों पर सम्मतियाँ लिखीं और नवोदित साहित्य-सेवियों को प्रोत्साहित किया। यश के पीछे नही दौड़े, तो देर से हीं सही, किंतु ‘यश’ उन्हें खोजता हुआ उनके घर तक पहुँचा। जीवन की संध्या वेला में, उन्हें केंद्रीय हिन्दी संस्थान की ओर से, पाँच लाख रूपए की राशि वाले ‘विवेकानंद सारस्वत सम्मान’ से भारत के राष्ट्रपति ने सम्मानित किया।
आचार्य सूरिदेव के पुत्र संगम कुमार रंजन ने स्मृतियों के दरबाज़े से चुने हुए अनेक संस्मरणों को श्रोताओं से साझा किया तथा उनके सुप्रशंसित काव्य-संग्रह ‘बहुत है’ से इस कविता का पाठ किया कि, “चुभते शूलों वाले तलवे/ लगते जैसे पाटल-डाली/ रक्तसिकत उनकी शोभा फिर/ जैसे, फैली जावक-लाली/ पावक से सवादित सूरज के द्रिग से छूटा सलिल बहुत है/ दुर्गम सीमाहीन गगन सा जीवन का पाठ कुटिल बहुत है”। संस्कृत के विद्वान प्रो गौरीनाथ राय, डा शालिनी पाण्डेय तथा डा रोज़ी कुमारी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी ने दीपोत्सव की बधाई देते हुए, यह गीति-रचना पढ़ी कि, “दीवाली अनुपम है त्योहार/ वर्ष में एक बार है आती/ गृह-गृह को है स्वच्छ कराती/ सबको स्वच्छ रहना सिखलाती/ सिखलाती सदव्यवहार”। कवि कुमार अनुपम ने कहा कि, “काल की मुनादी है कि जल्द फ़िज़ा बदलेगी/ मेघ गहराए हों तो क्या रोशनी जवां निकलेगी”।कवि जय प्रकाश पुजारी का कहना था कि “किसी से मुहब्बत का वादा न करना/ हसीं है ज़िंदगी आधा-आधा न करना”।
कवयित्री डा शालिनी पाण्डेय, डा अर्चना त्रिपाठी, डा आर प्रवेश, अर्जुन प्रसाद सिंह, डा मनोज कुमार, रविंद्र कुमार सिंह, अरविंद कुमार आदि ने भी अपनी काव्य-रचनाओं से प्रबुद्ध श्रोताओं को काव्य-रस से सिक्त किया। अतिथियों का स्वागत प्रबंध मंत्री कृष्णरंजन सिंह ने तथा कार्यक्रम का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया।