पटना, १९ नवम्बर। देश की महान विदुषी और गोवा की पूर्व राज्यपाल डा मृदुला सिन्हा के निधन से साहित्य-समाज में वही मर्मांतक शोक है,जो कभी छायावाद की प्रमुख स्तम्भ महीयसी महादेवी वर्मा के खोने से हुआ था। महादेवी की तुलना में मृदुला जी के व्यक्तित्व के वृहत्तर आयाम थे। वो हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में अत्यंत मूल्यवान अवदान देने के अतिरिक्त शिक्षा, समाजसेवा, राजनीति और प्रशासन में भी महनीय योगदान के लिए सदैव स्मरण की जाती रहेंगी। उनके साहित्य और आचरण में सर्वत्र और सर्वदा भारतीय संस्कृति और लोक-जीवन के रंग दिखाई देते हैं। वो मृदुता और वैदुष्य की मूर्तमान रूप थीं। उनके द्वारा प्रणीत हिन्दी गीत को ‘राष्ट्रीय हिन्दी गीत’ का स्थान दिया गया है।
यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-सभा की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि मृदुला जी का बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी अत्यंत आत्मीय लगाव था। राज्यपाल बनाए जाने से पूर्व भी और बाद में भी उन्होंने अनेक उत्सवों में अपनी गरिमा पूर्ण उपस्थिति दीं। सम्मेलन के ३६वें महाधिवेशन में वो गोवा की राज्यपाल के रूप में प्रथमबार सम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित हुईं थीं। प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल और भारत के महामहिम राष्ट्रपति रामनाथ कोविद ने महाधिवेशन का उद्घाटन किया था। दो दिनों के उस महोत्सव में वो तीन-तीन बार उपस्थित हुईं। उसके पश्चात हमने उन्हें जब भी स्मरण किया वे अपने संपूर्ण वात्सल्य और स्नेह के साथ उपस्थित हुईं। सम्मेलन के शती वर्ष में आयोजित शताब्दी सम्मान समारोह का न केवल उन्होंने उद्घाटन किया, बल्कि स्वयं भी ‘शताब्दी-सम्मान’ स्वीकार किया और अपने कर-कमलों से देश भर के सभी प्रांतों से चुनी गई ९९वे विदुषियों को शताब्दी सम्मान से अलंकृत किया। कवयित्री सम्मेलन का भी उद्घाटन किया और अपनी अनेक काव्य-रचनाओं से श्रोताओं को आप्यायित किया। उनके आग्रह पर साहित्य सम्मेलन के तत्त्वावधान में बिहार के ३५ साहित्य-सेवियों का एक दल गोवा की तीन दिवसीय यात्रा पर गया था, जहाँ गोवा विश्वविद्यालय के साथ एक राष्ट्रीय संगोष्ठी भी संपन्न हुई। गोवा राजभवन में उन्होंने न केवल सबको भोज दिया। बल्कि सबको ‘विदाई’ देकर विदा किया। उनके व्यक्तित्व की विराटता को नापना अत्यंत कठिन है। ‘सीता की आत्म-कथा’ उनकी ऐसी कृति है, जिसमें उनके विराट साहित्यिक-सामर्थ्य का बोध होता है।
शोक-सभा में, सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा अर्चना त्रिपाठी, डा ध्रुब कुमार, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा विधु शेखर पाण्डेय, राज कुमार प्रेमी, बिंदेशवर प्रसाद गुप्ता, ओम् प्रकाश वर्मा, कृष्ण रंजन सिंह, अमित कुमार सिंह, बाँके बिहारी साव तथा विजय कुमार ने अपने संसमरणों को साझा करते हुए अपने शोकोदगार व्यक्त किए। सभा के अंत में दो मिनट मौन रख कर दिवंगत आत्मा की शांति के लिए प्रार्थना की गई।