पटना, २१ नवम्बर। लोक-महापर्व ‘छठ’ के समापन के दिन ही शनिवार की संध्या, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में लोक-संस्कृति की एक अलग ही छटा दिखाई दी। लोकरंग को साहित्य के शब्द दिए जा रहे थे। कवियों के श्रीमुख से लोकभाषाओं के प्राण-वाहक गीत झड़ रहे थे। कविगण एक से बढ़कर एक गीति-रचना का पाठ कर रहे थे। किसी ने खेत की पगडंडियों पर झूमती इठलाती नायिका के चित्र खींचे, तो किसी ने पनघट की राह दिखाई। कोई लेरुआ, बछडुआ को स्मरण किया तो किसी ने धानी चुनर को। अवसर था, वयोवृद्ध साहित्यानुरागी कपिल सिंह मुनि के १०१ पूर्ति पर आयोजित मंगलोत्सव और लोकभाषा कवि-सम्मेलन का।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने भोजपुरी में ग़ज़ल पढ़ते हुए कहा कि “आदमी के कहीं कमी नइखे/ आज आदमी, ‘आदमी’ नईखे/आदमी तन से आदमी बाटे/ आदमी मन से आदमी नईखे”। अंगिका में अपना गीत पढ़ते हुए, श्रीकात व्यास ने वृद्धों की पीड़ा को इन पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी कि “हम्मे बूढ़ा ठूँठो गाछ के समान हो/ हमरो दुर्दशा पर केकरो नै ध्यान हो।”
श्री मुनि के कवि पुत्र डा आर प्रवेश ने गाँव के मवेशियों के प्रति अपनी चिंता और अनुराग व्यक्त किया और अंगिका की इन पंक्तियों को स्वर दिया- आ गे गैया हियों हियों ! घाटों के पानी पियो पियो !
अपने अध्यक्षीय काव्यपाठ में सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने भोजपुरी के अपने इस गीत को जैसे ही स्वर दिया कि ‘खेतबा के डरिया चलेली गुजरिया, मन ही में करत किलोल/ पिया मोर सुनर चढल जवानिया, बोले निर्मोही मीठे बोल’, तो पूरा सभागार उल्लास और तालियों की गड़गड़ाहट से झूम उठा। इसके पूर्व डा सुलभ ने सुप्रसिद्ध स्वतंत्रता-सेनानी एवं साहित्यानुरागी कपिल मुनि के दीर्घायुष्य की कामना की और उन्हें देश और संस्कृति को समर्पित एक प्रणम्य साधु-पूरुष बताया।
सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि यह गौरव और प्रसन्नता की बात है कि हमारे बीच आज भी आदरणीय कपिलमुनि जैसे कर्मवीर योद्धा जीवित हैं। ऐसे महापुरुष नई पीढ़ी के लिए प्रेरणा-स्रोत होते हैं।
वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, श्रीकांत व्यास, लता प्रासर, विधुशेखर पाण्डेय, ऋतु प्रज्ञा, सरिता मंडल, अर्जुन प्रसाद सिंह, चित रंजन भारती, रजनीश कुमार गौरव, राज किशोर झा, रीतेश कुमार आदि कवियों ने भी अपनी लोक-रचनाओं से, इस लोक भाषाकवि-सम्मेलन को सार्थकता प्रदान की। सभी कवियों और कवयित्रियों को कपिल सिंह मुनि स्मृति सम्मान से विभूषित किया गया। इस अवसर पर, डा आर प्रवेश की पुस्तक ‘अंगिका लोक परंपरागत संस्कृति’ तथा उनके ही संपादन में प्रकाशित हो रही मासिक पत्रिका ‘अंगिका-प्रवेश’ का लोकार्पण किया गया। मंच का संचालन कुमार अनुपम ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह सिंह ने किया।