पटना, ‘कृष्णाम्बरी’, ‘वाणाम्बरी’, ‘अरुण रामायण’ तथा ‘महाभारती’ जैसे दशाधिक महाकाव्यों सहित ४५ मूल्यवान ग्रंथों के रचनाकार महाकवि पोद्दार रामावतार ‘अरुण’ , हिन्दी साहित्य के महान शब्द-शिल्पी और भारतीय संस्कृति के अमर गायक थे। वे बिहार के अविस्मरणीय गौरव-पुरुषों में से एक थे।यह बातें मंगलवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, अरुण जी का रचना-वैशिष्ट्य उनके शब्द-संयोजन में स्पष्ट परिलक्षित होता है। वे बड़ी बातें, अत्यंत सहजता से अति सरल शब्दावली में कहते हैं। उनकी भाषा और शैली ‘वार्तालाप’ की है। उनके विपुल साहित्यिक अवदानों के लिए उन्हें भारत सरकार ने ‘पद्म-सम्मान’ से भी विभूषित किया। वे साहित्य-सेवा की कोटि से बिहार विधान परिषद के मनोनीत सदस्य भी रहे। वे निस्संदेह मसीजीवी साहित्यकार थे। जीवन-पर्यन्त लिखते रहे। काव्य की सभी विधाओं पर लिखा। महाकाव्य, खंड काव्य, गीति-काव्य, आत्म-कथा, उन्होंने सबको मूल्य और प्रतिष्ठा दी। इस अवसर पर कवयित्री डा पूनम कुमारी तथा डा पिंकु कुमार चौधरी को ‘महाकवि पोदार रामावतार ‘अरुण’ स्मृति-सम्मान से विभूषित किया गया। इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी-वंदना से हुआ। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपने दर्द का इज़हार इस तरह किया कि “किस को खबर कि कौन है तिश्ना कहाँ कहाँ/ किसको खबर कि प्यासी है दरिया कहाँ कहाँ/ बज़्में सुख़न में आज सुनाएँगे जो ग़ज़ल/ अब देखें इसका होता है चर्चा कहाँ कहाँ”। वेतिया से पधारे वरिष्ठ कवि डा गोरख प्रसाद ‘मस्ताना’ का कहना था – “जब तक नील गगन में रहता लगता मात्र कहानी में/ झील में चाँद उतर आता तब आग लगाता पानी में”।वरिष्ठ कवि जय प्रकाश पुजारी, कुमार अनुपम, डा अर्चना त्रिपाठी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, डा आभा कुमारी, लता प्रासर, अनुपमा सिन्हा तथा अरविंद कुमार ने भी अपनी रचनाओं से तालियाँ बटोरी। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।