पटना, २ दिसम्बर। अद्भुत मेधा के अविस्मरणीय व्यक्तित्व और देश के प्रथम राष्ट्रपति देशरत्न डा राजेंद्र प्रसाद की पवित्रात्मा आज भी देश से कुछ अपेक्षाएँ रखती है। देश की अनेक महान विभूतियों के जन्म दिवस को किसी न किसी विशेष-दिवस के रूप में मनाया जाता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती को ‘अहिंसा दिवस’, नेहरु जी की जयंती को ‘बाल-दिवस’ तथा सरदार वल्लभ भाई पटेल के जन्म दिन को ‘एकता दिवस’ के रूप में मानते हैं। इसी प्रकार इंदिरा जी की जयंती को ‘शक्ति-दिवस’, डा राधा कृष्णन की जयंती को ‘शिक्षक-दिवस’, डा विधान चंद्र राय के जन्म दिन को ‘चिकित्सक-दिवस, राजीव गांधी के जन्मदिन को ‘सद्भावना-दिवस’, महान अभियंता विश्वेश्वरैया के जन्मदिन को ‘अभियंता-दिवस’, चौधरी चरण सिंह के जन्म दिन को ‘किसान दिवस’ के रूप में मनाया जाता है। किंतु अभी तक देशरत्न के नाम पर कोई ‘दिवस-विशेष’ घोषित नहीं किया गया है। क्या भारत की सरकार उनके योगदान को कम आंकती है? बिहार के प्रबुद्ध नागरिकों की वर्षों पुरानी मांग रही है कि डा राजेंद्र प्रसाद जी की जयंती को ‘मेधा दिवस’ के रूप में मनाया जाए। इसलिए आवश्यक है कि भारत सरकार, और राज्य सरकार भी, देशरत्न के जन्मदिन को ‘मेधा-दिवस’ घोषित करे।
यह मांग बुधवार को, देशरत्न की १३७वीं जयंती की पूर्व संध्या पर, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित विचार-गोष्ठी में उठाई गई। संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि राजेंद्र बाबू की देश-सेवा और हिन्दी-सेवा अमूल्य है। उनका वलिदान भी अमूल्य है। उन्होंने देश के लिए अपनी समस्त संभानाओं और सुखों की तिलांजलि दे दी। ‘मनसा, वाचा, कर्मणा’, गांधी का उनके जैसा कोई दूसरा अनुआयी नहीं हुआ। उनकी जयंती को यदि भारत की सरकार ‘मेधा-दिवस’ घोषित करती है, तो यह न केवल उनके प्रति हमारी श्रेष्ठतम श्रद्धांजलि ही होगी, अपितु यह देश के लाखों-करोड़ों नौजवानों के लिए प्रेरणा-दायक भी होगा। डा सुलभ ने कहा कि बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन, राजेंद्र बाबू के जीवन चरित्र पर विद्वान लेखक और कवि अमरेन्द्र नारायण की पुस्तक ‘पावन चरित्र’ का प्रकाशन करने जा रहा है, जो पूर्णतः रंगीन और दर्जनों दुर्लभ चित्रों से परिपूर्ण, बहुत ही श्रम पूर्वक लिखा गया अत्यंत मूल्यवान ग्रंथ है।
संगोष्ठी और जयंती समारोह का उद्घाटन करते हुए, पटना उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश न्यायमूर्ति राजेंद्र प्रसाद ने कहा कि राजेंद्र बाबू जीवन में सदा सर्वोच्च स्थान पर रहे। अपनी सभी परीक्षाओं में वे प्रथम रहे, द्वितीय नहीं हुए। उनकी मेधा के सभी क़ायल थे। यदि उनके जन्म-दिवस को ‘मेधा दिवस’ के रूप में मनाया जाय तो यह सर्वोत्तम होगा।
संस्कृत, हिन्दी, तमिल,तेलगू समेत अनेक भाषाओं की निष्णात विदुषी तथा बिहार राष्ट्रभाषा परिषद की पूर्व निदेशक डा मिथिलेश कुमारी मिश्र एवं मनीषी विद्वान डा विंध्यवासिनी दत्त त्रिपाठी को भी उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक स्मरण किया गया।
अतिथियों का स्वागत करते हुए सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि डा मिथिलेश कुमारी मिश्र सादगी , विनम्रता और वैदुष्य की प्रतिमूर्ति थीं। उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन हिन्दी, संस्कृत और भारतीय भाषाओं की सेवा में अर्पित कर दिया था। काम आयु में हीं उन्हें वैधव्य की पीड़ा सहनी पड़ी। किंतु उन्होंने अपना शेष जीवन साहित्य-देवता को अर्पित कर दिया।
संगोष्ठी में कवी कमल किशोर ‘कमल’, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, राजकुमार प्रेमी, जाय प्रकाशपुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह,रविंद्र कुमार सिंह, कौशलेंद्र पाण्डेय, प्रणब समाजदार, अमित कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
संजय राय, शिक्षा संवाददाता की रिपोर्ट.