पटना, ५ दिसम्बर। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के पूर्व प्रधान मंत्री और यशस्वी कवि पं रामचंद्र भारद्वाज कोमल भावनाओं के अत्यंत लोकप्रिय और प्रभावशाली कवि थे। उनकी काव्य-कल्पनाएँ मुग्ध करती हैं। मनोहारी शब्द-संयोजन, काव्य-लालित्य और अलंकृत भाषा उनके सृजन की विशिष्टताएं थीं। उनका काव्य-पाठ भी हृदय-ग्राही होता था। वे उस समय के कवि थे, जब हिन्दी के विस्तृत आसमान पर बिहार के अनेक नक्षत्र दैदिप्यमान हो रहे थे। उन चमकते नक्षत्रों के बीच भी भारद्वाज जी की प्रभा कभी मलिन नहीं पड़ी। जीवन में उत्साह का सृजन करने वाली उनकी कविताएँ श्रोताओं के हृदय को स्पर्श करती थी। साहित्य के क्षेत्र से वे राज्यसभा के मनोनीत सदस्य भी रहे। साहित्य-सम्मेलन के प्रधान मंत्री के रूप में भी उनके कार्यों को व्यापक सराहना मिली।
यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में पं भारद्वाज की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि -सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, भारद्वाज जी अपने समय के महत्त्वपूर्ण कवियों में से एक थे। साहित्य के साथ राजनीति में भी उनकी दख़ल थी। वे राजनीत में एक सफल साहित्यिक हस्तक्षेप थे। इस अवसर पर चर्चित युवा साहित्यकार डा विवेक कुमार को पं रामचंद्र भारद्वाज स्मृति सम्मान से विभूषित किया गया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-गोष्ठी का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को तरन्नुम से पढ़ते हुए कहा कि, “आज आँखों में फिर आँसू हैं/ क्या मिला मुझको यूँ रुलाने से/ शमा के इश्क़ में है परवाना/ यूँ न शंकर जला ज़माने से”। कुमार अनुपम “सदियों की तलाश लम्हा उदास है/ दिख रहा चमन पर कायनात का असर/ तेज़ाब लिए हाथ में लोग चल रहे/ दिखने लगा खेत में बरसात का असर”।
वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, जय प्रकाश पुजारी, अर्जुन प्रसाद सिंह, रविंद्र कुमार सिंह, चंदन कुमार झा, नेहाल कुमार सिंह आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया।इस अवसर पर राजेंद्र तिवारी, आराधना ,अमित कुमार सिंह, प्रणब समाजदार, मोहित कुमार, पूजा राय, विनीता कुमारी, अमृता कुमारी, विनय चंद्र भी उपस्थित थे।