पटना, २ जनवरी। अंगिका भाषा और साहित्य के लिए अपना संपूर्ण जीवन न्योक्षावर करने वाले कवि डा नरेश पाण्डेय ‘चकोर’ कोमल भावनाओं से युक्त एक ऋषि-तुल्य भक्त कवि और साहित्यकार थे। अंगिका में उनका प्राण बसता था। डेढ़ सौ से अधिक छोटी-बड़ी पुस्तकों से उन्होंने ‘अंगिका’ का भंडार भरा। उनकी भाव-पूर्ण रचनाएँ और काव्य-पाठ की शैली दिव्य-आनंद प्रदान करने वाली हुआ करती थी। भक्ति-काव्य पढ़ते-पढ़ते वे झूमने-नाचने लगते थे। कविता उनके संपूर्ण व्यक्तित्व में समाहित थी।यह बातें आज यहां बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में, डा चकोर की जयंती पर आयोजित समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, चकोर जी मृदुभावों के आदर्श कवि थे। चकोर जी जीवन-पर्यन्त ‘अंगिका’ के लिए जीते-मरते रहे। अपने जन्म-दिवस को ‘अंगिका-महोत्सव’ के रूप में मनाते थे। अंगिका में प्रकाशित पुस्तकों और पत्रिकाओं की प्रदर्शनी लगाया करते थे। किंतु समर्पण का जो भाव उनमे ‘अंगिका’ के लिए था, उससे कम ‘हिन्दी’ के लिए भी नहीं था। वे अंगिका’ की उन्नति चाहते थे, ‘हिन्दी’ के मूल्य पर नहीं।इस अवसर पर हिन्दी और भोजपुरी के वरिष्ठ कवि हरिद्वार मस्ताना (बगहा, पश्चिम चंपारण) को ‘डा नरेश पाण्डेय चकोर स्मृति लोकभाषा सम्मान’ से अलंकृत किया गया। डा सुलभ और चकोर जी के पुत्र डा विधुशेखर पाण्डेय ने श्री मस्ताना को २१०० रु की सम्मान राशि समेत,पुष्प-हार, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और प्रशस्ति-पत्र देकर सम्मानित किया । अतिथियों का स्वागत करती हुईं सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने कहा कि हिन्दी भाषा को समृद्ध करने में लोकभाषाओं और बोलियों का बहुत बड़ा योगदान है। अंगिका के अनन्य सेवी डा चकोर जी का अवदान दोनों ही भाषाओं के उन्नयन में प्रणम्य है।चकोर जी के पुत्र डा विधुशेखर पाण्डेय, डा कुंदन कुमार सिंह, आनंद किशोर मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, परवेज़ आलम तथा नूतन पाण्डेय ने भी अपने उद्गार व्यक्त व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र ने वाणी-वंदना से किया।आज के सम्मानित कवि मस्ताना ने भोजपुरी में अपना गीत पढ़ते हुए कहा कि ” आइना देखी ना, अपना चेहरा/ रूप एक बा, रंग अनेक बा/ आइना रंग ना बताई/ दिल के बतिया जान जाई/ देह थरथराये लागी, आइना बताबे लागी” ।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “अब तो राहें भी हो गई धुंधली/ लौट आओ किसी बहाने से/ हम तो नाज़ुक मिज़ाज हैं शंकर/ टूट जाएँगे आज़माने से।” वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, माधुरी भट्ट, इन्दु उपाध्याय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुलोचना कुमारी, अश्मजा प्रियदर्शिनी, यशोदा शर्मा, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, शुभम दिव्यांशु, राज किशोर झा, रविंद्र सिंह, ने भी अपनी काव्य-रचनाओं का आकर्षक पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।