पटना, ४ जनवरी। कवयित्री माधुरी भट्ट की कविताएँ स्त्री-विमर्श को नवीन धरातल प्रदान करती हैं। स्त्री-मन की व्यथा और आकांक्षाओं की सहज अभिव्यक्ति इनकी रचनाओं में मिलती हैं। शोषण के विरुद्ध पूरी दृढ़ता से खड़ी इनकी कविताएँ बदल रहे आधुनिक समाज में स्त्रियों की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं। इनकी कविताओं में पीड़ा और आक्रोश ही नहीं सकारात्मक सोंच की नवीन दिशा भी है, जो एक नई अनुभूति के साथ उत्साह का सृजन भी करती है। यह बातें सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में भूतपूर्व सैनिक और साहित्यकार वल्लभदेव तिवारी के स्मृति-दिवस पर, माधुरी भट्ट के काव्य-संग्रह ‘काव्य-दर्शनी’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि लोकार्पित पुस्तक की कवयित्री आध्यात्मिक दृष्टि-संपन्न सुंदर-समाज की अभिलाषी विदुषी हैं। अस्तु चेतना के स्तर पर इनकी जो प्रखरता है और जो आदर्श विचार हैं वे सब उनके साहित्य में स्वभावतः आते हैं।
वल्लभदेव तिवारी को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि भारतीय सेना में अपनी वीरता और ओजपूर्ण रचनाओं के लिए सदा श्रद्धेय रहे तिवारी जी एक ऋषि-तुल्य साहित्यकार थे, जिनकी स्मृति देश के प्रति प्रेम और निष्ठा जगाती है। ऐसे लोग हमारे समक्ष दृष्टांत और प्रेरणा के प्रकाश स्तम्भ होते हैं।
अपने कृतज्ञता-ज्ञापन के क्रम में श्रीमती भट्ट ने अपनी लोकार्पित पुस्तक से ‘माँ’, ‘नारी-शक्ति’, ‘भूमिका पत्नी की’, ‘बेनाम औरत’ और ‘संकल्प’ शीर्षक कविताओं का प्रभावशाली पाठ भी किया। सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, पूर्व प्राचार्य अशोक कुमार सिंह, वरिष्ठ पत्रकार मिथिलेश कुमार सिंह, आकाशवाणी के पूर्व अधिकारी सत्येंद्र कुमार सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवयित्री डा शांति जैन ने अपनी ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “सिर्फ़ साँसों के आने-जाने को ज़िंदगी हम नहीं कहा करते/ ताल्लुक़ों के फ़क़त निभाने को दोस्ती हम नही कहा करते”। डा शंकर प्रसाद का कहना था कि “तेरे जाने का शिकवा सा रहा है/ धुआँ सा रात भर उठता रहा है।”
वरिष्ठ कवि बच्चा ठाकुर, राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा सुधा सिन्हा, यशोदा शर्मा, अश्मजा प्रियदर्शिनी, कामेश्वर कैमुरी, श्वेता प्रियदर्शनी, डा पल्लवी विश्वास, रेणु सिन्हा, नीलम, डा शालिनी पाण्डेय, सागरिका राय, राज किशोर झा, ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवयित्री उंडु उपाध्याय ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। इस अवसर पर उपेन्द्र कुमार भट्ट, अविनय काशीनाथ, राजेश भट्ट, विष्णु स्वरूप , प्रणब समाजदार, चित रंजन भारती समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।