पटना, ११ जनवरी। दिव्यांगजनों के पुनर्वास में शोध की सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। शोध और तकनीकी विकास से दिव्यांगों के पुनर्वास की बड़ी चुनौती का सामना आसानी से किया जा सकता है। क्योंकि हम शोध से ही परिस्थिति का सही आकलन कर पाते हैं, जो सम्यक् पुनर्वास के लिए आवश्यक है। पुनर्वास-विज्ञान में शोध की अपार संभावनाएँ भी हैं। आवश्यकता है कि पुनर्वास-कर्मी और प्रशिक्षण-संस्थान शोध के कार्यों पर विशेष बल दें।यह विचार, भारतीय पुनर्वास परिषद के सौजन्य से पटना स्थित इंडियन इंस्टिच्युट औफ़ हेल्थ एडुकेशन ऐंड रिसर्च द्वारा, ‘रिसर्च इन डिजैबिलिटी रिहैबिलिटेशन’ विषय पर आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार के उद्घाटन-सत्र में पुनर्वास-विशेषज्ञों ने व्यक्त किए।समारोह के मुख्यअतिथि और बिहार के निःशक्तता आयुक्त डा शिवाजी कुमार ने बिहार में आँकड़ा-संचयन और उसके सदुपयोग तथा शोध के कार्यों का विवरण देते हुए, शोध के व्यापक महत्त्व पर बल दिया। उन्होंने कहा कि सम्यक् पुनर्वास के लिए व्यापक योजनाओं के निर्माण में यह आवश्यक है कि निर्णय लेने वाली समितियों के समक्ष वस्तु स्थिति स्पष्ट हो।अध्यक्षता करते हुए संस्थान के निदेशक-प्रमुख डा अनिल सुलभ ने कहा कि विकलांगों के पुनर्वास के विविध क्षेत्रों में अत्यंत महत्त्वपूर्ण तकनीकी विकास हुआ है। यह सबकुछ इस दिशा में किए जा रहे निरंतर अनुसंधान के प्रतिफल है। शोध की व्यापक संभावनाएँ हैं, जिसके लिए पुनर्वास-कर्मियों और प्रशिक्षण-संस्थानों को नगर से ग्रामीण क्षेत्रों तक पहुँचना होगा। वेबिनार में आज आर पी एम एन इंस्टिच्युट औफ़ स्पेशल एडुकेशन, सोनीपत (हरियाणा) के प्राचार्य डा देवेंद्र पाण्डेय, पी आई हौस्पीटल, न्यू गुयाना, औस्ट्रेलिया के पुनर्वास विशेषज्ञ डा बैंडिटा गोगोई, डी आई एम एच वाराणसी के नैदानिक मनो-वैज्ञानिक डा नूर शबीना, जामिया मिलिया इस्लामिया से सोमैय्या खान, प्रो विकास कुमार तथा डा नीरज कुमार वेदपुरिया ने अपने वैज्ञानिक पत्र प्रस्तुत किए। मो समद अंसारी के तकनीकी सहयोग से आयोजित इस वेबिनार का संचालन संस्थान के विशेष-शिक्षा विभाग के अध्यक्ष और वेबिनार के संयोजक प्रो कपिलमुनि दूबे ने तथा धन्यवाद ज्ञापन प्रो संतोष कुमार सिंह ने किया। हौंगकौंग, सउदी अरब, ओमान, दुबई समेत भारत के असम, केरल,छत्तीसगढ़, गोवा, हिमांचल प्रदेश, हरियाणा, बिहार, झारखंड, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, सिक्किम, राजस्थान, उत्तरप्रदेश, तमिलनाडू, बंगाल आदि राज्यों के २५० पुनर्वास-विशेषज्ञ वेबिनार में भाग ले रहे हैं।