युवा दिवस के अवसर पर कंट्री इनसाइड न्यूज़ के प्रधान कार्यालय मे मैनेजिंग एडिटर कौशलेन्द्र पाराशर ने स्वामी जी के चित्र पर पुष्प अर्पित किया. भारतीय संस्कृति की जड़ों तक पहुंचने के प्रयास को स्वामी विवेकानंद आगे बढ़ाते हैं। यही सोच स्वामी विवेकानंद को दुनिया भर में स्वीकार्य भी बनाती है और उन्हें सनातन धर्म के प्रवक्ता, हिन्दुस्तान और हिन्दुस्तानी संस्कृति के प्रतीक के तौर पर स्थापित करती है। उनकी समावेशी सोच आज भी नरेंद्र मोदी की सरकार में ‘सबका साथ, सबका विकास’ के नारे में झलकता है।
स्वामी विवेकानंद ने दुनिया को सिखाया कि हर कुछ अच्छा करने वालों को प्रोत्साहित करना हमारा कर्त्तव्य है ताकि वह सपने को सच कर सके और उसे जी सके। यह सपना अंत्योदय के उत्थान के विचार को भी जन्म देता है। जब तक देश के आखिरी गरीब के उत्थान को सुनिश्चित न कर लिया जाए, विकास बेमानी है- इस सोच का जन्म भी विवेकानंद की सोच से ही हुआ है।
ईश्वर के बारे में स्वामी विवेकानंद की जो धारणा है वह हर धर्म के करीब है। मगर, यही सनातन धर्म के मूल में भी है। परोपकार। परोपकार ही जीवन है। इस स्वभाव से हर किसी का जुड़ना जरूरी है। वे कहते हैं, “जितना हम दूसरों की मदद के लिए सामने आते हैं और मदद करते हैं उतना ही हमारा दिल निर्मल होता है। ऐसे ही लोगों में ईश्वर होता है।”
विभिन्न धर्मों, समुदायों, परंपराओं और सोच को स्वामी विवेकानन्द की सोच जोड़ती है। यह जड़ता से मुक्ति को प्रेरित करती है। यही वजह है कि इस देश में स्वामी विवेकानंद का किसी आधार पर कोई विरोधी नहीं है। हर कोई स्वामी के विचार के सामने नतमस्तक है। 19वीं सदी में दुनिया ने सनातनी धर्म के जिस प्रवक्ता को उनके ओजस्वी विचारों के कारण ‘साइक्लोनिक हिन्दू’ बताया था, आज भी दुनिया के स्तर पर वह सनातनी प्रवक्ता अपनी सकारात्मक सोच के साथ मजबूती से खड़ा है। तब भी स्वामी विवेकानंद की सोच युवा थी, आज भी युवा है। वे कालजयी हैं। कालजयी रहेंगे।
कौशलेन्द्र पाराशर. मैनेजिंग एडिटर