पटना, १६ जनवरी। “आपको जानते जानते ही लोग जानेंगे, फिर जब जान लेंगे, तो जाने नहीं देंगे।” यह बात हिन्दी के महान शैलीकार राजा राधिका रमण प्रसाद सिंह ने, डा चतुर्भुज से तब कही थी, जब वो अपनी प्रथम नाट्य-कृति ‘मेघदूत’ उन्हें भेंट करने के लिए प्रथम बार मिले थे। डा चतुर्भुज एक महान नाटककार ही नहीं, काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक महान दार्शनिक चिंतक भी थे, जिन्हें ठीक से जानना अब भी शेष है। स्मृतियों की धूल में हमने एक नायाब हीरे को खो दिया है। जब हम उन्हें ठीक से जान लेंगे, तो राजा जी के कथन सिद्ध हो जाएँगे। वे हमारी स्मृतियों से कभी जा न पाएँगे।
यह बातें शनिवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में डा चतुर्भुज की जयंती पर,उनके ही द्वारा स्थापित नाट्य-संस्था ‘मगध कलाकार’ पटना के सौजन्य से आयोजित नाट्य-संगोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि घटनाओं और संघर्षों से भरा उनका जीवन और व्यक्तित्व भी बहु-आयामी था। रेलवे के अधिकारी रहे, अनेक विद्यालयों में शिक्षक रहे, आकाशवाणी की सेवा की, केंद्र-निदेशक के पद से अवकाश लिया, निजी कंपनियों में भी कार्य किए। अनेक कार्य पकड़े अनेक छोड़े। किंतु एक कार्य से कभी पृथक नही हुए, तो वह था नाट्य-कर्म। सभी तरह की भूमिकाएँ की, नारी-पात्र की भी, नाटक लिखे, निर्देशन किया,प्रस्तुतियाँ की। नाट्य-कर्म से संबद्ध सबकुछ किया। उनका जीवन और नाटक पर्यायवाची शब्द की तरह अभिन्न थे। बालपन से मृत्य-पर्यन्त वे इससे कभी पृथक नहीं हो सके।
डा चतुर्भुज के पुत्र एवं सुप्रसिद्ध नाटककार डा अशोक प्रियदर्शी ने कहा कि डा चतुर्भुज मेरे पिता ही नहीं मेरे आचार्य भी थे। उन्होंने ही मुझे गढ़ा और संस्कृति-कर्मी और नाटककार बनाया। नाटकों में उनका प्राण बसता था। रंगमंच के लिए वे सभी तरह के वलिदान के लिए तैयार रहते थे। दिन रात की परवाह न करते थे।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद,वरिष्ठ रंगकर्मी लाला राज कुमार प्रसाद, कुमार अनुपम, चतुर्भुज जी की पुत्री निर्मला सिन्हा, राज कुमार प्रेमी, ऋषिकेश सिन्हा, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, प्रणय कुमार सिन्हा तथा सुनील कुमार सिन्हा ने भी अपने उद्गार व्यक्त किए। मगध कलाकार की ओर से संस्था के वरिष्ठतम सदस्य लाला राज कुमार प्रसाद ने सम्मेलन-पुस्तकालय के लिए डा सुलभ को, डा चतुर्भुज की समस्त कृतियां भेंट की, जिनमें ‘मेघनाथ’, ‘रावण’, ‘भगवान बुद्ध’, ‘कंस-वध’, ‘श्रीकृष्ण’, ‘सिराजुद्दौला’, ‘अराबली का शेर’, ‘कुँवर सिंह’, ‘झाँसी की रानी’, ‘कलिंग विजय’, ‘शकुंतला’, ‘मुद्रा राक्षस’, ‘कर्ण’, ‘मीर क़ासिम’, ‘कृष्णा कुमारी’ आदि नाट्य कृतियों के अतिरिक्त ‘मेरी रंग यात्रा’ (आत्मकथा), ‘राज दर्शन’ और ‘समुद्र का पक्षी’ (दोनों उपन्यास), तथा ‘औरंगज़ेब’ सम्मिलित है।
इस अवसर पर वरिष्ठ कवि अर्जुन सिंह, बाँके बिहारी साव, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’, प्रणब समाजदार, रवींद्र कुमार सिंह, अरविंद कुमार,प्रशस्ति प्रियदर्शी, निशिकांत मिश्र, कुमारी मेनका, पूजा राय, विनीता कुमारी आदि उपस्थित थे। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।