पटना, ३० जनवरी। विश्व-विश्रुत महाकाव्य ‘कामायनी’ समेत अनेक अनमोल कृतियाँ देने वाले महाकवि जयशंकर प्रसाद एक युग-प्रवर्त्तक साहित्यकार थे, जिन्होंने एक साथ, कविता, कहानी, उपन्यास और नाट्य साहित्य से हिन्दी साहित्य का भण्डार भरा और उसके गौरव में वृद्धि की। वे हिन्दी काव्य-साहित्य में छायावाद के प्रवर्त्तक और उन्नायक थे। यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती-समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि महाकवि के पिता बाबू देवी प्रसाद जी एक सफल और प्रतिष्ठित व्यवसायी थे। किंतु वाल्यावस्था में हीं उनके सिर से पिता का साया उठ गया। इसलिए जयशंकर प्रसाद जी पर पूरे परिवार के भरण-पोषण और व्यवसाय का बड़ा भार आ पड़ा। परिणाम-स्वरूप इनकी नियमित शिक्षा प्रभावित हुई और इन्हें अपने घर पर हीं शिक्षा पूरी करनी पड़ी। मुख्यतः ये स्वाध्याय पर हीं आश्रित हुए। बचपन से हीं इनमें कविता और लेखन के प्रति गहरी अभिरूचि थी और इन्होंने घर पर हीं, हिन्दी, संस्कृत, उर्दू, अंग्रेज़ी और फ़ारसी भाषाओं का गहरा अध्ययन किया और अपनी सारी शक्तियाँ काव्य-सृजन और लेखन को अर्पित कर दिया। वे अत्यंत संवेदनशील और भावुक कवि हीं नही, दयावान व्यक्ति भी थे। उनके पास जो कुछ भी था उसे उन्होंने साहित्य और समाज को दे दिया। इसलिए जीवन-पर्यन्त अभावों और दुःख में रहे। मात्र ४८ वर्ष की आयु में हीं ‘क्षय’ रोग ने उन्हें अपना ग्रास बना लिया। उनकी आयु छोटी रही, किंतु उनका साहित्यिक व्यक्तित्व बहुत हीं विशाल रहा। उन्होंने साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में विपुल लेखन किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय ने कहा कि प्रसाद जी को छायावाद काल का मुकुटमणि कहा जाता है। वह इसलिए कहा गया कि हिन्दी साहित्य की सभी प्रमुख विधाओं में सृजनात्मक कृतियाँ दी, जो अगली पीढ़ियों के लिए अनुकरणीय सिद्ध हुईं। विद्वान यह मानते रहे हैं कि ‘कामायनी’ के लिए उन्हें ‘नोबेल पुरस्कार’ दिया जाना चाहिए था। ऐतिहासिक नाटकों के लिए वे सर्व-पूज्य रहे।सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा कल्याणी कुसुम सिंह, श्याम नारयाण महाश्रेष्ठ तथा जगदीश प्रसाद राय ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवी राज कुआर प्रेमी ने वाणी-वंदना से किया। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ग़ज़ल को स्वर देते हुए कहा कि “घर मेरा रंजो-ग़म ने देख लिया, आ गए किसी बहाने से/ समझाया बहुत लेकिन वो बाज आते हैं कब सताने से”। कवयित्री सागरिका राय का कहना था कि “मेरे बगीचे में भी कुछ गुलाब खिले हैं/ पता नहीं क्यों आज फिर, मुस्कुराकर वे काँटों से मिले हैं।”कवयित्री अभिलाषा कुमारी, कुमार अनुपम, जयप्रकाश पुजारी, डा पल्लवी विश्वास, राज आनंद, विनय कुमार विष्णुपुरी, चित रंजन लाल भारती, अर्जुन प्रसाद सिंह, निशा पराशर, कुमारी मेनका तथा राज किशोर झा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। मंच का संचालन कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने किया। इस अवसर पर डा एच पी सिंह, प्रणब कुमार समाजदार, रवींद्र कुमार सिंह, राम नंदन प्रसाद, सुधीर कुमार झा, कुमार गौरव, गणेश प्रसाद, विनीता कुमारी और आयुर्मान यास्क समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।
संजय की रिपोर्ट.