पटना, १ फरवरी। भारतीय सिनेमा के एक बड़े कलाकार ही नहीं, काव्य-कल्पनाओं से समृद्ध एक समर्थ कवि भी हैं अखिलेंद्र मिश्र। इनमे कलाकार की कोमलता, भावुकता, संवेदनशीलता तो है ही, अध्यात्म और दर्शन की प्रज्ञा और प्रौढ़ता भी है, जिन गुणों ने इन्हें शब्दों की शक्ति और वाणी को ओज दिया है। इनकी काव्य-रचनाओं में लोक-मंगल के कल्याणकारी स्वर सुस्पष्ट सुनाई देते हैं, जो शिथिल पड़े समाज को झकझोर कर जगाते हैं और विविध स्थलों पर चेतावनी देते तो कहीं मंजुल उपदेश देते भी दिखाई देते हैं। इनकी रचनाओं में अध्यात्म, धर्म,प्रकृति, प्रेम और जीवन के प्रति रागात्मकता भी है, जो मनुष्य को मनुष्यता की ओर ले जाती है।
यह बातें, सोमवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में सुप्रसिद्ध सिने कलाकार और कवि अखिलेंद्र मिश्र के प्रथम काव्य-संग्रह’अखिलामृतम’ के लोकार्पण समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि कवि अखिलेंद्र ‘शब्द’ को ब्रह्म मानकर काव्य-साधना की ओर प्रवृत हुए हैं, जिससे यह आशा बँधती है कि जिस निष्ठा से इन्होंने अभिनय और वाक्-कला को साधा है, उसी निष्ठा से शब्द को साधने में सफल होंग़े। जीवन में प्रकृति के महत्त्व को रेखांकित करती अपनी कविता ‘चेतावनी’ में कवि यह भविष्य-वाणी की है कि तीसरा विश्व-युद्ध मानव का मानव से नहीं, अपितु प्रकृति और मानव’ में होगा। यह प्राकृतिक संसाधनों का असीम दोहन और उसके साथ मनुष्यों के खिलवाड़ के होने वाले भीषण दुष्परिणाम की ओर कवि का मार्मिक संकेत है।
वरिष्ठ साहित्यकार डा उषा किरण खान ने अपनी शुभेच्छा व्यक्त करते हुए कहा कि अखिलेंद्र जी की कविताओं में एक गुरुत्तर भार है। कविताओं के वजन से इनके काव्य-सामर्थ्य को समझा जा सकता है। इनकी रचनाओं के मूल में अध्यात्म का गहरा चिंतन है। विद्या और ज्ञान के प्रति इनमे विशेष अनुराग है। भावनुभूति को प्रदर्शित कर देना तो कलाकार की विशेषता है ही, जो एक अभिनेता के रूप में इन्होंने किया है। लेकिन इन कविताओं में भी ये सारी अनुभूतियाँ अभिव्यक्त हुई हैं। ये अपनी माटी से जुड़े हैं, यह और बड़ी बात है।
अपने कृतज्ञता ज्ञापन में कवि अखिलेंद्र मिश्र ने कहा कि उन्होंने जो कुछ भी लिखा है वह सब उनकी निजी अनुभूति, अनुभव और चिंतन की अभिव्यक्ति है। लौकडाउन की अवधि में जो कुछ भी देखा, सुना, अनुभव किया और चिंतन किया उसे लिपिबद्ध किया। उन्होंने लोकार्पित पुस्तक से, ‘शब्द’ शीर्षक कविता पढ़ते हुए कहा कि “कबीर पूछत है कौन करत है सबद संवाद? बिना अर्थ जाने, मतकर उच्चार शब्द का/ पहले साध शब्द को/ करो साधना शब्द की/ शब्द संसार है/ शब्द श्रव्य है/ शब्द दृश्य है। शब्द ही सृजन/ शब्द ही शिव है/ बिना शब्द, सब शव है।”
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा चंद्र भूषण राय, विनोद अनुपम, डा कुमार वरुण, कुमार अनुपम,पुस्तक के प्रकाशक सत्यभान चौहान तथा रजनी कांत ने भी कवि को अपनी शुभकामनाएँ दी। लोकार्पण-समारोह का संचालन वरिष्ठ साहित्यकार डा कुमार विमलेन्दु सिंह ने किया।
इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवि राज कुमार प्रेमी की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’ ने कहा – “कोई कहता कर्म किए जा, सोच कभी मत फल की बात/ कोई कहता देख आज को, छोड़ पुरानी कल की बात/ प्यासी धरती जल बिन तरसे, पत्थर पर पानी बरसे/ करे भला कैसे ऐसे में कोई हरी फसल की बात”। कवयित्री डा भावना शेखर का कहना था कि – “आज दुआओं की नदी, बनाकर बह रही कविता/ पलकों के नमक में ठिठके हैं छंद”।
वरिष्ठ कवि योगेन्द्र प्रसाद मिश्र, जय प्रकाश पुजारी, डा रीता सिंह, डा शालिनी पाण्डेय, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, पं गणेश झा, उत्तरा, चंदा मिश्र, प्रभात कुमार धवन, अर्जुन प्रसाद सिंह, राज किशोर झा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया।