पटना, ११ फरबरी। हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में अप्रतिम अवदान देनेवाले मनीषी विद्वान, प्रकाशक और संपादक आचार्य रामलोचन शरण ‘बिहारी’, खड़ी बोली के अभिनव गद्य शैली के प्रवर्तक माने जाते हैं। आचार्य शिवपूजन सहाय ने उन्हें ‘बिहार का द्विवेदी’ कहा है। आधुनिक हिन्दी के नव-जागरण के उषा-काल के जिन मनीषी हिन्दी-सेवियों को अत्यंत श्रद्धा से स्मरण किया जाता है, शरण जी उनमे अग्र-पांक्तेय हैं। समाज में शिक्षा और साहित्य के प्रति अनुराग जगाने वाले शरण जी ने बालकों और प्रौढ़ों की शिक्षा के लिए जो कार्य किए, वे चकित करते हैं। उन्होंने बालकों की शिक्षा के लिए सौ से अधिक पुस्तिकाएँ लिखीं,जिनमें ‘मनोहर पोथी’ सम्मिलित है। निरक्षरता-निवारण और प्रौढ़ शिक्षा के लिए भी उन्होंने शताधिक लघु-पुस्तकें लिखीं । बाल-पत्रिका ‘बालक’ का प्रकाशन किया। प्रकाशन संस्था ‘पुस्तक-भण्डार’की स्थापना की। इसके माध्यम से महावीर प्रसाद द्विवेदी, महाकवि जय शंकर प्रसाद, बेनीपुरी, दिनकर, हरिऔंध तथा महात्मा गांधी के साहित्य का प्रकाशन समेत हिन्दी के लिए जो कुछ भी उन्होंने किया वह हिन्दी-साहित्य के इतिहास का गौरवपूर्ण पक्ष है। यह बातें गुरूवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह और लघुकथा गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि शरण जी ने हिन्दी भाषा के अध्यापन और उन्नयन के समक्ष उपस्थित अनेक अभावों की भी पूर्ति की। उन्होंने ‘व्याकरण बोध’ शीर्षक से हिन्दी व्याकरण लिखा। उनकी इस पुस्तक पर युक्त-प्रांत (अब उत्तर प्रदेश) के शिक्षा विभाग ने वर्ष १९१५ में पुरस्कृत किया था। ‘मास्टर साहेब’ और ‘बिहारी जी’ लोक-नाम से लोकप्रिय शरण जी ने ८१ वर्ष की अपनी आयु में १८१ वर्षों के कार्य कर, समाज, शिक्षा, साहित्य और हिन्दी-सेवा का अत्यंत दुर्लभ और अतुल्य उदाहरण प्रस्तुत किया। इस अवसर पर, आचार्य शरण जी के पुत्र सीता शरण सिंह ने पिता की स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि आचार्य जी के प्रति महावीर प्रसाद द्विवेदी जी, दिनकर जी, बेनीपुरी जी, आचार्य शिवपूजन सहाय, कलक्टर सिंह केसरी, हरिऔंध जी आदि देश भर के बड़े साहित्यकर अत्यंत श्रद्धा रखते थे। गांधी जी भी उनकी हिन्दी-सेवा के प्रशंसक थे। उन्होंने आचार्य जी के प्रति विद्वानों के विचारों को पढ़कर सुनाया।अतिथियों का स्वागत करती हुईं सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने कहा कि बिहार में हिन्दी साहित्य की कोई भी चर्चा पूरी नही हो सकती, जब तक रामलोचन शरण जी के व्यक्तित्व और कृतित्व की चर्चा न हो। आधुनिक हिन्दी के उन्नयन में उनका योगदान अतुल्य है। सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा, आचार्य शरण जी की पुत्री प्रो इंदिरा शरण, पुत्रवधु और लेखिका उर्मिला सिंह ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित बाल-कथा तथा लघुकथा गोष्ठी में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने ‘वह फिर नहीं आया है’, योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने ‘रेणु की त्रासदी’, राज कुमार प्रेमी ने ‘सच्चा प्यार’, कुमार अनुपम ने ‘बटेसर का दर्द’, डा विनय कुमार विष्णुपुरी ने ‘साहस’, अशोक कुमार ने ‘क्या है ज़िंदगी’, डा सविता मिश्र मागधी ने ‘लस्सी में मिठास’, असित नाथ तिवारी ने ‘नदी लौटती भी है’, कविता कुमारी ने ‘सन्नाटे की चादर’ लता प्रसार ने ‘जलन’, प्रतिभा स्मृति ने ‘ज्योति बुझा दी गई’ तथा नीतू कुमारी ने ‘सम्मान’ शीर्षक से कथा-पाठ किया। मंच का संचालन योगेन्द्र प्रसाद मिश्र ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया। समारोह में कवयित्री चंदा मिश्र, जयंती शरण, मिहिर लोचन शरण, राजश्री लोचन, पूजा कुमारी, रवीद्र कुमार सिंह आदि भी उपस्थित रहे।
संजय राय की रिपोर्ट.