‘सस्ता भोजन, गरीब से यारी’ के सहारे बंगाल विजय की उम्मीद में ममता.देश की चुनावी हवा बिहार होते हुए अब बंगाल पहुंच गई है. बहस के केंद्र में ममता बनर्जी और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी हैं. साल का सबसे बड़ा सवाल, किसका होगा बंगाल? लेकिन बंगाल की सत्ता किसके हाथों जाएगी. किसके हाथों से फिसलेगी, इस सवाल के बीच एक बड़ी भूमिका होती है चुनावी वादों की. चुनाव से ठीक पहले राजनीतिक पार्टियां वादों और सौगातों का पिटारा खोलती हैं. इसी कड़ी का हिस्सा है ममता की ‘माँ योजना’- ‘सस्ता भोजन, गरीब से यारी अब बंगाल की बारी’ममता बनर्जी ने अपनी पार्टी तृणमूल कांग्रेस के स्लोगन मां, माटी और मानुष से मां शब्द लेकर इस योजना की शुरुआत की है. कोलकाता से शुरू हुई इस योजना में 16 कॉमन किचन होंगे. जिसमें पाँच रुपये में एक थाली भोजन मिलेगा. इस थाली में चावल, दाल, सब्ज़ी और अंडा होगा. सरकार इस योजना को धीरे-धीरे पश्चिम बंगाल के अलग-अलग शहरों में लागू करना चाहती है.दक्षिण से लेकर उत्तर तक, चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर जहां-जहां गये हैं वहां-वहां उन्होंने इस तरह की योजना शुरू करने का आइडिया दिया है. लेकिन इस योजना की शुरूआत सबसे पहले तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जयललिता ने की थी. जिन्होंने सबसे पहले अपने राज्य में अम्मा किचन शुरू किया.2017 में जब प्रशांत किशोर यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के रणनीतिकार थे तब सपा और कांग्रेस ने मिलकर चुनाव लड़ा. उस समय तत्कालीन सीएम अखिलेश यादव ने भी ऐलान किया था कि अगर उनकी सरकार बनती है तो वो अम्मा किचन के तर्ज पर ही समाजवादी किचन की शुरुआत करेंगे. चूंकि चुनाव आने वाले हैं इसलिए ममता सरकार की योजना पर सवाल जरूर उठेंगे. लेकिन लॉकडाउन के समय कम्युनिटी किचन ने अहम रोल अदा किया. देश के करोड़ो लोगों को कम्युनिटी किचन के जरिये फ्री में भोजन मिला. आज कई राज्य सरकारें इस तरह की योजना चला रही हैं.इस तरह की योजना का मुख्य उद्देश्य शहरी ग़रीबों को कम दाम पर पौष्टिक भोजन उपलब्ध कराना है. हालांकि कम्युनिटी किचन की परिकल्पना महात्मा गांधी ने आज से करीब 100 साल पहले ही की थी.महात्मा गांधी मानते थे कि खाना बनाना सीखना, हमारे शिक्षा प्रणाली का हिस्सा होना चाहिये. दक्षिण अफ्रीका से वापस आने के बाद महात्मा गांधी जब पहली बार कोलकाता के शांति निकेतन गये तो उन्हें वहां के छात्रों के तौर-तरीके पसंद नहीं आये. उन्हें लगा कि छात्र पढ़ाई के साथ-साथ अपना काम भी ख़ुद करें. 10 मार्च 1915 को रवींद्र नाथ टैगोर की सहमति से महात्मा गांधी ने शांति निकेतन में सेल्फ़ हेल्प मूवमेंट की शुरुआत की. वहां कम्युनिटी किचन की शुरुआत हुई, जिसमें छात्र बारी-बारी से सबके लिए खाना बनाते थे.जयललिता ने की थी शुरुआत -सबसे पहले 19 फरवरी साल 2013 में तमिलनाडु सरकार ने अम्मा उनावगम यानी की अम्मा कैंटीन की शुरुआत की थी. इस योजना के अंतर्गत राज्य के म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन सब्सिडाइज रेट पर पका हुआ भोजन देते हैं. तमिलनाडु के अम्मा कैंटीन में साउथ इंडियन खाना मिलता है. जिसमें 1 रुपये में इडली, 5 रुपये प्रति प्लेट के हिसाब से सांभर और चावल, 3 रुपये प्रति प्लेट के हिसाब से दही चावल मिलता है.तमिलनाडु के बाद देश के कई राज्यों ने ये मॉडल अपनाया. कर्नाटक, तेलंगाना, महाराष्ट्र, ओडिशा की सरकारों ने भी कम्युनिटी किचन की शुरुआत की.कर्नाटक में इंदिरा कैंटीन-कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने शहरी गरीबों को कम दाम पर तीन वक़्त का खाना देने के लिये इंदिरा कैंटीन की शुरुआत की थी. 16 अगस्त 2017 को कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने कर्नाटक के बेंगलूरु में इस योजना का उद्घाटन किया था. बाद में इसे बेंगलुरु के अलावा राज्य के छोटे शहरों मैसूर, मैंगलोर, शिमोगा, हुबली, कलबुर्गी में भी शुरू किया गया.महाराष्ट्र में शिव भोजन योजना-महाराष्ट्र सरकार ने 26 जनवरी 2020 को शिव भोजन योजना की शुरुआत की. इस योजना का उद्देश्य 10 रुपये में भोजन उपलब्ध कराना है. लॉकडाऊन के दौरान थाली का दाम घटाकर 5 रुपये कर दिया गया था. शिव भोजन थाली में दो रोटियां, एक सब्जी, थोड़ा चावल और दाल परोसी जाती है.तेलंगाना में अन्नपूर्णा-तेलंगाना में साल 2014 में राज्य सरकार ने अन्नपूर्णा योजना की शुरुआत की. इस योजना के तहत ग्रेटर हैदराबाद म्युनिसिपल कॉर्पोरेशन इलाक़े में 5 रुपये प्रति थाली के हिसाब से भोजन दिया जाता है. 2014 में 8 जगहों से इसकी शुरुआत की गई थी, लेकिन अब 150 केंद्रों से रोज़ाना क़रीब 25 हजार लोगों को सस्ती दर पर पका हुआ खाना उपलब्ध कराया जा रहा है.आंध्र प्रदेश में NTR कैंटीन.आंध्र प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री नारा चंद्र बाबू नायडू ने की शुरुआत की थी. जिसमें नाश्ता, दोपहर का खाना और रात का भोजन मिलता था. नाश्ता 5 रुपये में और भोजन 15 रुपये प्रति थाली के हिसाब से मिलता था लेकिन साल 2019 में वाईएस जगन मोहन रेड्डी की सरकार ने इस योजना को बंद कर दिया.लॉकडाउन में दायरा बढ़ा.इन राज्यों के अलावा भी देश के कई राज्यों ने इस तरह की योजनायें शुरू की. खासतौर पर कोरोना महामारी के दौरान, लॉकडाउन में कई राज्यों ने फ्री में भी पका हुआ खाना उपलब्ध कराया. झारखंड और बिहार जैसे राज्यों ने भी लॉकडाउन के दौरान पका हुआ भोजन मुफ्त में लोगों तक पहुंचाया.भले ही कम दाम पर पका हुआ भोजन उपलब्ध कराने की ये योजनायें पिछले 8 साल में ही शुरू हुई हैं लेकिन कच्चा अनाज केंद्र सरकार पहले से ग़रीबों को उपलब्ध कराती रही है. राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत 75 फ़ीसदी ग्रामीण और 50 फ़ीसदी शहरी आबादी को सस्ता अनाज उपलब्ध कराने का लक्ष्य रखा गया.कम्युनिटी किचन का इतिहास.कम्युनिटी किचन का इतिहास उतना ही पुराना है जितना की सिख धर्म. 15वीं शताब्दी में सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरू गुरु नानक देव ने लंगर यानी की कम्युनिटी किचन की शुरुआत की. लंगर शब्द पर्सियन भाषा का शब्द है. जिसका मतलब होता है, ग़रीबों के लिए शरण. देश भर के गुरुद्वारों में जो लंगर चलाये जाते हैं वो कम्युनिटी किचन का अच्छा उदाहरण है.2020 के ग्लोबल हंगर इंडेक्स के 107 देशों की सूची में भारत 94वें नंबर पर है. डेटा के मुताबिक़ भारत की 14 फ़ीसदी आबादी कुपोषित है. GHI के डेटा के मुताबिक पड़ोसी बांग्लादेश, म्यंमार, पाकिस्तान हमसे थोड़ी बेहतर स्थिति में हैं. यानी भारत में ऐसे और कम्युनिटी किचन खोले जाने की जरूरत है, ताकि हम सस्ती दर पर लोगों को पका हुआ भोजन उपलब्ध करा पायें.
पिंटू भारती की रिपोर्ट.