शैलेश तिवारी, वरीय संपादक की विशेष रिपोर्ट. बिहार सरकार का “ढपोर शंखी बजट”बिहार सरकार द्वारा आज प्रस्तुत बजट को बिहार कांग्रेस मैनिफ़ेस्टो कमिटी एवं रिसर्च विभाग के अध्यक्ष आनन्द माधव ने ढपोर शंखी बताया जिसे जमीनी हक़ीक़त से कोई मतलब नहीं है। रोज़गार की बात की गई पर कोई उसका रोड मैप या ब्लू प्रिंट नहीं दिया गया है। बीस लाख लोगों के राज़गार सृजन की बात कर रही यह सरकार ख़ाली पड़े साढ़े चार लाख रिक्त पदों को भरनें में अब तक सक्षम नहीं हुई।यही सुशासन बाबू हैं जिन्होंने कहा था कि यह लैंड लॉक स्टेट है यहाँ इतना रोज़गार के लिये पैसा कहाँ है? बजट में ना तो उद्योग की चर्चा है और ना ही बंद पड़े चीनी मिल, जूट मिल को खुलवाने की बात है। शिक्षकों के प्रति इस सरकार की उदासीनता किसी से छिपी नहीं है।नये मेडिकल कॉलेज एवं अस्पताल खोलनें की बात है परंतु पुराने अस्पतालों की दुर्दशा पर कोई टिप्पणी नहीं है। सात निश्चय पार्ट वन अधिकांश काग़ज़ पर ही रहे अब सात निश्चय पार्ट टू की बात की गई है। प्राथमिक शिक्षा में सुधार पर कोई बल नहीं है।पुलिस बल को चुस्त दुरुस्त करनें की कहीं कोई चर्चा नहीं है। हम सब जानते हैं कि बिहार में अपराध चरम पर है।प्रवासी मज़दूर कोरोना काल में इतने कष्ट से गुजरे, उनके पलायन को रोकने हेतु कोई ठोस नीति की चर्चा इस बजट में नहीं है।सच तो यह है कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं क़ानून व्यवस्था इस सरकार की प्राथमिकता ही नहीं है।पर जब वादों का ही भोज है तो परोसनें में क्या जाता है?