पटना, १ मार्च। महाकवि पं जगन्नाथ मिश्र गौड़ ‘कमल’ हिन्दी-काव्य के अत्यंत मनोहारी काल ‘छायवाद’ के एक अत्यंत महत्त्वपूर्ण कवि के रूप में समादृत हैं। उनकी विश्रुत काव्य-कृति ‘प्रकृत-पुरुष’ उस युग की प्रतिनिधि रचना मानी जाती है। कमल जी महाकवि केदार नाथ मिश्र ‘प्रभात’ के बड़े भाई थे। ख्याति और कीर्ति में प्रभात जी उनसे आगे निकल गए, किंतु प्रतिभा में वे उनसे कम नही थे। प्रकृति और प्रेम के इस महान कवि की भाव-प्रवण रचनाओं में भारत की सांस्कृतिक चेतना अपनी संपूर्ण आभा के साथ अभिव्यक्त हुई है। वे हिन्दी काव्य-साहित्य में स्तुत्य योगदान देने वाले बिहार के उन अनेक महान कवियों में से एक हैं, जो समालोचकों की दृष्टि से अलक्षित रह गए। यह बातें, सोमवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित जयंती समारोह एवं कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि कमल जी ने साधुभाव से हिन्दी की सेवा की। वे आत्म-श्लाघा और प्रचार से सर्वथा दूर रहे।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरंभ कवयित्री नम्रता कुमारी की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने जब इन पंक्तियों को स्वर दिया कि “पाया जो कुछ भी मैंने उसे बाँटता रहा/ मेरे लिए तो क़र्ज़ अदाई है ज़िन्दगी/ रहमो-करम उसी की, ये साँसे उधार की/ अपनी नहीं है यारों पराई है ज़िंदगी”, तो सभागार तालियों से गूंज उठा। कवयित्री नम्रता कुमारी की इन पंक्तियों पर भी श्रोताओं के ख़ूब हाथ खुले कि “बीते कितने महीने साल/ है सबके हाल बस बेहाल / दर्द दे गया वह भी कितना / कितना असह्य और बेमिसाल”।कवि गणेश झा के इस छंद पर भी श्रोताओं ने दिल खोलकर हाथ खोला। कि “आप तो धृतराष्ट्र बने बैठे हैं/ द्रौपदी का चीर हरण हो रहा/ निर्दयी सरकार बने बैठे हैं/ नयनों का नीर चरण धो रहा”। कवि जय प्रकाश पुजारी ने जीवन को संगीत बताते हुए निवेदान किया कि “तन वीणा मन बाँसुरी कर ले/ अंग-अंग में सरगम भर ले/ गूंजे प्रीत का गीत जग में/ राग में जा तू ढल / जीवन है संगीत रे मीत ताल मिलाकर चल”। कवि ओम् प्रकाश ‘प्रकाश’ का कहना था कि “ग़द्दारों के लिए गले में गरजता गोला चाहिए/ जल जाए जल्लाद भी वतन का प्रकाश शोला चाहिए।वरिष्ठ कवि राज कुमार प्रेमी, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, पं विनोद कुमार झा, अशोक कुमार, अभिलाषा कुमारी, निशा पराशर, विशाल कुमार, कुमारी मेनका तथा आदि कवियों और कवयित्रियों ने भी अपनी रचनाओं से ख़ासा प्रभाव छोड़ा।मंच का संचालन ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल ने किया। इस अवसर पर बाँके बिहारी साव, ए के घोष, चंद्रशेखर आज़ाद, अश्विनी कविराज, अमीरनाथ शर्मा, सुरेंद्र चौधरी, अमित कुमार सिंह, राम किशोर सिंह ‘विरागी’, प्रभात कुमार आदि प्रबुद्धजन उपस्थित थे