पटना, २ मार्च। यदि साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन नहीं हुआ करता तो, साहित्य की पीयूष-वाहिनी धाराएँ सुख गईं होतीं। इन पत्रिकाओं के कारण ये पुण्य-सलिलाएँ अविरल बहती रहीं हैं। ऐसी पत्रिकाएँ न केवल साहित्यकारों को अवसर ही प्रदान करती हैं, बल्कि प्रोत्साहन और प्रशिक्षण भी प्रदान करती हैं। इसीलिए इन्हें विद्वानों ने नव-आगंतुक साहित्यसेवियों की प्रशिक्षणशाला भी कहा है।संसार-भूमि में साहित्य की अविरल धारा बहती रहे, इसलिए साहित्यिक पत्रिकाओं को जीवित रखना आवश्यक है।यह बातें बुधवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में त्रैमासिक पत्रिका ‘नया भाषा भारती संवाद’ के नूतन अंक का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। भारतीय भाषा साहित्य समागम के तत्त्वावधान में आयोजित लोकार्पण समारोह में डा सुलभ ने कहा कि यह पत्रिका विगत २१ वर्षों से हिन्दी की अत्यंत मूल्यवान सेवाएँ करती आ रही है। इसका प्रसार क्षेत्र समग्र भारत है। बल्कि इसकी प्रतियाँ अब भारत की सीमाएँ भी लांघने लगी हैं। विविध रचनात्मक एवं आलोचनात्मक सामग्रियों से परिपूर्ण यह पत्रिका अनेक हिन्दी सेवियों में रचनात्मक रस का संचार कर, जीवन-आहार प्रदान कर रही है।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने कहा कि पत्रिका के प्रधान संपादक नृपेंद्रनाथ गुप्त ने अपने रक्त से इस पत्रिका को सींचा और सँवारा है। उंहोंने दधिची की भाँति अपनी अस्थियाँ इसके लिए गलाई हैं। उन्होंने दुष्यंत की इन पंक्तियों को सार्थक किया है कि “कौन कहता है कि आसमां में सुराख़ हो नही सकता/ एक पत्थर तो तबीयत से उछालो यारों।”
अतिथियों का स्वागत करते हुए, पत्रिका के सह-संपादक बाँके बिहारी साव ने कहा कि देशभर के विद्वान साहित्यकारों के सहयोग से यह पत्रिका दो दशकों से नियमित रूप से प्रकाशित हो रही है। यह देश की कुछ थोड़ी सी उन पत्रिकाओं में है, जिनका नियमित प्रकाशन हो रहा है और जिन्हें संपूर्ण भारतवर्ष में स्वीकृति मिली है। पत्रिका के प्रधान संपादक नृपेंद्रनाथ गुप्त की एकनिष्ठ तप-साधना की जितनी भी प्रशंसा की जाए कम है। अपनी रुग्णावस्था में भी वे इसके प्रकाशन के लिए कटिबद्ध रहते हैं।इस अवसर पर वरिष्ठ साहित्यसेवी राज कुमार प्रेमी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कुमार अनुपम, कवि जय प्रकाश पुजारी, डा मनोज कुमार, ड़ा मनोज गोवर्द्धनपुरी, चितरंजन भारती, कृष्ण रंजन सिंह, पं गणेश झा, निशा पराशर, आनंद मोहन झा, प्रभात धवन, अमिताभ ऋतुराज, अश्विनी कविराज, अमित कुमार सिंह रवींद्र कुमार सिंह, राम किशोर सिंह विरागी, विजय कुमार दिवाकर आदि ने भी अपने विचार व्यक्त किए। धन्यवाद ज्ञापन पत्रिका के प्रबंध संपादक प्रो सुखित वर्मा ने किया।