अद्भुत क़िस्सा-गो थे फणीश्वरनाथ रेणु, मन को मोहती है उनकी भाषा और शैली, साहित्य सम्मेलन में आयोजित हुआ जन्म शताब्दी समारोह,कवि बाबूलाल मधुकर का खंड-काव्य ‘मगही मेघदूत’ तथा डा मेहता नगेंद्र की पुस्तक ‘बेलपत्र’ का हुआ लोकार्पण,रेणु जी की स्मृति को समर्पित होगा सम्मेलन का अगला महाधिवेशन। महान कथा शिल्पी फणीश्वर नाथ रेणु अद्भुत क़िस्सा-गो थे। उनकी भाषा और शैली अत्यंत मोहक है। हिन्दी कथा-साहित्य में आंचलिकता का प्रयोग कारने वाले वे प्रथम कथाकार माने जाते हैं। उनके उपन्यास ‘मैला आँचल’ को महान समीक्षक आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने हिन्दी का श्रेष्ठतम ‘आंचलिक उपन्यास’ बताया था। उनकी कहानी ‘मारे गए गुल्फ़ाम’ को एक महाकाव्यात्मक आख्यान कहा जा सकता है, जिस पर सिनेमा के सुख्यात गीतकार शैलेंद्र ने ‘तीसरी क़सम’ नाम से एक फ़िल्म बनाई थी। वे सीने में अग्नि को पोषित करने वाले,क्रांति-धर्मी कथाकार थे। जीवन-पर्यन्त संघर्ष-शील रहे रेणु जी के हृदय में निरंतर एक अग्नि जलती रही, लेखनी के माध्यम से कथाओं में प्रकट हुई। उन्होंने जो कुछ भी लिखा वह भोगे हुए यथार्थ पर आधारित था और जो लिखा उसे जिया भी। उनके साहित्य में ग्राम्य और आंचलिकता की प्रधानता रही। रेणु जी देश की स्वतंत्रता की लड़ाई में हीं नहीं, स्वतंत्र भारत में भी वे पीड़ित-मानवता के लिए लड़ते-लिखते रहे। यह बातें गुरुवार को, बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन में रेणु जी के जन्म शताब्दी समारोह और पुस्तक लोकार्पण समारोह का उद्घाटन करती हुईं, बिहार की उपमुख्यमंत्री रेणु देवी ने कही। उन्होंने कहा कि रेणु जी पर नेपाल में हो रही लोकतंत्र की लड़ाई का बड़ा गहरा असर था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा नेपाल में हीं कोइराला परिवार के संरक्षण में हुई थी। भारत में भी वे स्वतंत्रता आंदोलन तथा बाद में समाजवादी आंदोलन से जुड़े रहे। उन्हें अनेक बार जेल की यातना भी सहनी पड़ी।
उपमुख्यमंत्री ने हिन्दी और मगही के वरिष्ठ कवि बाबूलाल मधुकर के खंड-काव्य ‘मगही मेघदूत’ तथा वरिष्ठ पर्यावरणविद डा मेहता नगेंद्र सिंह की पुस्तक ‘बेलपत्र’ का लोकार्पण भी किया तथा दोनों साहित्यसेवियों को अपनी शुभकामनाएँ दी।समारोह के मुख्य अतिथि तथा बिहार के कला एवं संस्कृति मंत्री आलोक रंजन ने कहा कि रेणु जी के संबंध में यदि दो शब्दों में कहा जाए तो यह कहा जा सकता है कि वे ऐसे साहित्यकार थे जिनके शब्दों से ध्वनि और शब्दों के अर्थ से दृश्य उपस्थित होते हैं। समारोह की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि, रेणु जी की यशोकाया के निर्माण में साहित्य सम्मेलन की सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका रही। सम्मेलन के तत्कालीन साहित्यमंत्री आचार्य नलिन विलोचन शर्मा ने सम्मेलन पत्रिका ‘साहित्य’ में ‘मैला आँचल’ पर सुदीर्घ समीक्षा लिखी थी और उसे हिन्दी का ‘सर्व-श्रेष्ठ आंचलिक उपन्यास’ बताया था। उनकी इस टिप्पणी ने रेणु जी को रातों-रात हिन्दी के नभ पर चमकीले नक्षत्र की तरह प्रतिष्ठित कर दिया। उन्होंने कहा कि आगामी अप्रैल में आयोजित होने वाला सम्मेलन का ४२वाँ महाधिवेशन रेणु जी को समर्पित किया गया है, जिसमें उनके विराट व्यक्तित्व और महान कृतित्व पर गहन विमर्श होगा।
डा सुलभ ने लोकार्पित पुस्तक ‘मेघदूत’ के संबंध में चर्चा करते हुए कहा कि यह महाकवि कालिदास के महाकाव्य ‘मेघदूत’ का मगही अनुवाद नही होते हुए भी उसकी भाव-भूमि पर आधृत लोक-भाषा में प्रेम, विरह और लोक-पीड़ा की सुंदरतम अभिव्यक्ति देने वाली हृदय-ग्राही कृति है, जिसमें कवि ने अपना हृदय-निचोड़ कर रख दिया है। ‘बेलपत्र’ एक पर्यावरणविद साहित्य-सेवी की मूल्यवान कृति है, जिसमें प्रकृति और उसके नैसर्गिक सौंदर्य के साथ पर्यावरण के संकटों पर भी गहन चिंतन किया गया है।विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित रेणु जी के पुत्र दक्षिणेश्वर प्रसाद राय ने स्मृतियों को साझा करते हुए कहा कि इसी साहित्य सम्मेलन में पिताजी का शव रखा हुआ था। मेरी माताजी, मेरी बड़ी बहन और बड़े भाई दहाड़े मार कर रो रहे थे। मैं ४-५ वर्ष का था। क्या कुछ हो रहा है, यह समझने में अबोध था। वर्षों बाद मैं जान सका कि मेरे पिता इतने बड़े साहित्यकार थे। उनकी विदेशों में भी बड़ी प्रतिष्ठा थी। उनकी पुस्तकों का विदेशी भाषाओं में काफ़ी अनुवाद हुए। उन्होंने कला-संस्कृति मंत्री से रेणु जी के गाँव को पर्यटक-स्थल के रूप में विकसित करने का आग्रह किया।विशिष्ट अतिथि और दूरदर्शन, बिहार के कार्यक्रम-प्रमुख डा राज कुमार नाहर, संस्कृत के ख्यातिलब्ध विद्वान प्रो उमाशंकर ऋषि, लोकार्पित पुस्तकों के लेखक कवि बाबूलाल मधुकर तथा डा मेहता नगेंद्र सिंह तथा डा भवनाथ झा ने भी अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने, मंच का संचालन सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा ने किया।इस अवसर पर, वरिष्ठ शायर रमेश कँवल, डा उषा रानी जायसवाल, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, कौसर कोल्हुआ कमालपुरी, डा प्रभा मिश्रा, डा नागेश्वर प्रसाद यादव, कवि राज कुमार प्रेमी, कृष्ण रंजन सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, डा नम्रता कुमारी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा विश्वनाथ शर्मा, डा पूनम आनंद, डा शालिनी पाण्डेय, डा मीना कुमारी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा मनोज कुमार, बाँके बिहारी साव, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, लता प्रासर, नीता सिन्हा, डा नारायणी यादव तथा प्रेमलता सिंह, चंदा मिश्र तथा नेहाल कुमार सिंह निर्मल समेत बड़ी संख्या में हिन्दीप्रेमी उपस्थित थे।
संजय राय की रिपोर्ट /