कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /विधाता ब्रह्मा ने अपनी सुख-निद्रा में जो साँसें छोड़ीं उनसे नारी की उत्पत्ति हुई है ! यदि संसार में विधाता की यह कृति न होती, तो संसार में होता ही क्या? संसार को अपनी जिस रम्य और वंद्य ईश्वरीय उपहार पर गौरव करना चाहिए, उसकी घोर उपेक्षा और अपमान कर रहा है आधुनिक संसार। ऐसा प्राचीन भारत में कभी नहीं हुआ । हमें अपने पूर्वजों के उस महान विचार को आचरण में उतारना चाहिए, जिसमें स्त्रियों को ना केवल समान अधिकार और स्वतंत्रता प्राप्त है, अपितु उससे भी कुछ अधिक पूज्या का स्थान प्राप्त है । हम यदि उनकी पूजा नहीं कर सकते तो उन्हें अपमानित और लांछित तो न करें ! समानता का अधिकार और इतनी स्वतंत्रता तो अवश्य दें कि यह दुनियाँ उन्हें जीने योग्य लगे ! याद रहे जिस समाज में स्त्रियाँ ज्ञानवती और गुणवती होती हैं, वह समाज श्रेष्ठ और सुंदर होता है ! वर्ष का एक दिन नहीं, प्रत्येक दिन उनका है, उनका होना चाहिए ! हार्दिक बधाई ! हर अवस्था ( माता, पत्नी और कन्या ) में मातृ-स्वरूपा नारी-शक्ति को नमन है :