कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट . संगठन कौशल के दम पर “तीरथ सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाने का निर्णय अमित शाह जेपी नड्डा और प्रधानमंत्री मोदी ने लिया.त्रिवेंद्र रावत के इस्तीफे के बाद उत्तराखंड में नए सीएम की तलाश तेज हो गईथी . अभी तक कुल 5 नाम मुख्यमंत्री की दौड़ में शामिल बताए जा रहे हैं. इन नामों में 3 सांसदों के साथ 2 विधायक भी दौड़ में हैं. लेकिन सूबे का सीएम बनाने के लिए बीजेपी हाईकमान को क्षेत्रीय-जातीय के साथ अंदर-बाहर के फॉर्मूले को भी साधना होगा. मुख्यमंत्री की दौड़ में सबसे बड़ा नाम जो लम्बे समय से त्रिवेंद्र रावत के विकल्प के तौर पर नजर आता है वो है राज्यसभा सांसद और मोदी-शाह के करीबी अनिल बलूनी का. बलूनी उत्तराखंड को लेकर काफी संजीदा दिखाई देते हैं. यहां की विकास योजनाओं को गति देने के लिए भी वे केंद्र में सक्रिय नजर आते हैं.उत्तराखंड में ये माना जा रहा है कि त्रिवेंद्र की जगह बलूनी को लाया जा सकता ,लेकिन बलूनी को सीएम बनने के बाद विधानसभा का चुनाव भी लड़ना होगा. सूबे में अगले साल की शुरूआत में चुनाव होने हैं. ऐसे में उन्हें साल भर के भीतर दूसरा चुनाव भी लड़ना पड़ सकता है. ये भी माना जा रहा है कि सुरेन्द्र जीना के निधन से खाली पड़ी सल्ट विधानसभा से बलूनी को मैदान में उतारा जा सकता है. हालांकि बलूनी गढ़वाल मंडल से आते हैं, लेकिन उनकी राजनीति रामनगर के आस-पास ज्यादा केंद्रित रही है. सीएम की दौड़ में दूसरा बड़ा नाम है केंद्रीय शिक्षा मंत्री और पूर्व में सीएम रह चुके रमेश पोखरियाल निशंक का. निशंक भी हरिद्वार लोकसभा से सांसद हैं. ऐसे में निशंक को अगर सीएम बनाया जाता है कि उन्हें भी विधानसभा का चुनाव लड़ना होगा. साथ ही केंद्रीय मंत्री पद भी छोड़ना होगा. निशंक के सामने सबसे बड़ी चुनौती विधानसभा पहुंचना होगा. बलूनी और निशंक दोनों गढ़वाल मंडल से हैं और बाह्मण हैं.तीसरा बड़ा नाम सीएम की दौड़ में नैनीताल के सांसद और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय भट्ट का है. अजय भट्ट भी बाह्मण हैं, लेकिन वे कुमाऊ मंडल से आते हैं. ऐसे में कुमाऊ की 29 विधानसभा सीटों को साधने के लिए उन पर भी पार्टी हाईकमान दांव खेल सकता है. लेकिन अजय भट्ट के लिए भी सबसे बड़ी चुनौती
विधानसभा पहुंचना होगा. विधायकों में सीएम पद के सबसे बड़े दावेदार सतपाल महाराज बताए जा रहे हैं. सतपाल महाराज गढ़वाल मंडल के राजपूत हैं. ऐसे में त्रिवेंद्र रावत के विकल्प के रूप में उन्हें देखा जा सकता है. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती ये होगी भीतर-बाहरी की. सतपाल महाराज कांग्रेस छोड़कर बीजेपी में आए हैं. ऐसे में 57 विधायकों की प्रदेश भाजपा के सामने ये दबाव भी होगा कि कॉडर के व्यक्ति को ही सीएम बनाया जाए.
इन तमाम समीकरणों को देखते हुए बाजी धनसिंह रावत के हाथ भी लग सकती है. धनसिंह आरएसएस कॉडर के तो हैं ही, साथ ही गढ़वाल के राजपूत भी हैं. त्रिवेंद्र सरकार में वे मंत्री भी रहे हैं. लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती होगी, अनुभव की कमी. धनसिंह पहली बार विधायक और मंत्री बने हैं. ऐसे में जब बीजेपी के भीतर सात से पांच बार तक के विधायक फिलहाल हो तो उनके लिए राह थोड़ी कठिन हो सकती थी. लेकिन बीजेपी नेतृत्व में अगले वर्ष होने वाले उत्तराखंड चुनाव को देखते हुए नए चेहरे पर दाग लगाना है उचित समझा और प्रधानमंत्री, जेपी नड्डा ने निर्णय लिया मुख्यमंत्री बनाने का.