कौशलेन्द्र पाराशर की रिपोर्ट /योग का लक्ष्य कैवल्य की प्राप्ति है – प्रो. महेशसिंह,टी.पी.एस. कॉलेज में व्याख्यान आयोजित हुआ.” योग के बारे में दो भ्रांतियां व्याप्त है, प्रथम यह कि महर्षि पंतजलि ही योग के आदि प्रवर्तक है । तथा दूसरा यह कि पंतजलि द्वारा प्रतिपादित अष्ठांग येग ही योगानुष्ठान का आरंभ और अंत है । इन दोनों भ्रांतियों का निराकरण करते हुए ‘ योग दर्शन में समाधिपाद के मौलिकता ‘ विषय पर भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद्, शिक्षा मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा आयोजित वार्षिक व्याख्यान कार्यक्रम में परिषद् के अतिथि प्रध्यापक प्रो. महेश सिंह ने कही । उन्होंने कहा कि महर्षि पंतजलि के पूर्व हिरणगर्भ प्रसूत योग विद्या मौखिक एवं खंडित रूप में प्रचलित थी । कोइ आसन का, तो कोई केवल प्राणयाम का, तो कोई केवल ध्यान को ही योग के रूप में साधना करता था । महर्षि पंतजलि ने इन सभी पक्षों को क्रमानुसार व्यवस्थित किया उनको पूर्व अपर सबंध से जोड़ा और योग विद्या को शास्त्र के रूप में प्रतिष्ठित किया । पंतजलि योग के आदि वक्ता नहीं अपितु पश्चात् उपदेशक हैं । पंतजलि के अनुसार असम्प्रज्ञात समाधि ही योग का लक्ष्य है जिसे कैवल्य यानी पुरूष की केवल स्थिति कहा गया है । आरंभ में विषय – प्रवर्तन करते हुए महाविद्यालय के स्नातकोत्तर दर्शनशास्त्र विभाग के प्रो. श्यामल किशोर ने योग दर्शन में समाधिपाद के महत्व पर प्रकाश डालते हुए बताया कि योग-दर्शन में चार पाद होते हैं – समाधिपाद, साधनपाद, विभूतिपाद और कैवल्यपाद । साथ ही उन्होंने अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को विषय से जोड़ते हुए इसके महत्व की चर्चा की । अतिथियों का स्वागत करते हुए प्रधानाचार्य प्रो. उपेन्द्र प्रसाद सिंह इस तरह के आयोजन के लिए विभाग को बधाई दी । व्याख्यान माला के मुख्य अतिथि के रूप में प्रो. आर. सी. सिन्हा, अध्यक्ष, भारतीय दार्शनिक अनुसंधान परिषद् ने आश्वासन दिया कि महाविद्यालय में आगे भी इस तरह के आयोजन में परिषद् का सहयोग मिलेगा । परिषद् का उद्धेश्य दर्शन के व्यावहारिक आयाम को जन-जन तक पहुँचाना है । सेमिनार को बिहार दर्शन परिषद् के अध्यक्ष प्रो. बी.एन.ओझा ने भी संबोधित किया । इस राष्ट्रीय महत्व की व्याख्यान में अनेक महाविद्यालयों के शिक्षक सहित बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएँ सम्मिलित हुए, जिनमें प्रमुख हैं – प्रो. पूनम सिंह, प्रो. राजेश सिंह, प्रो. वीणा अमृत, प्रो. कुंजबिहारी प्रसाद, प्रो. दिवाकर पाण्डेय, प्रो. आशीष, डॉ. विजय कुमार सिन्हा, प्रो. जावेद अख्तर खॉ, प्रो. एस. बी. चौधरी, डॉ. कृष्णनंदन प्रसाद, डॉ. धर्मराज राम, प्रो. अंजलि प्रसाद, प्रो. उषा किरण, डॉ. मुकुंद कुमार, प्रो. प्रशांत, डॉ. विनय भूषण, प्रो. दीपिका शर्मा, प्रो. सुशोभन पलाधि, डॉ. देवारति घोष, प्रो. नूरी आदि । धन्यवाद – ज्ञापन प्रो. रूपम ने किया । कार्यक्रम का संचालन दर्शनशास्त्र के शोधार्थी मनीष कुमार चौधरी ने किया ।