संजय राय की रिपोर्ट/ भारतीय संगीत विश्व को दिया गया भारत के महान संगीतर्षियों का सबसे बड़ा अवदान है। भारत अपनी जिन महान उपलब्धियों पर गर्व करता है, उनमे भारतीय संगीत श्रेष्ठतम है। यदि संगीत न होता, तो हम अपना वैदिक साहित्य को भी जीवित नही रख पाते। हमारा प्राच्य साहित्य इसी कारण से अस्तित्वमान रहा कि, वे संगीत-बद्ध रहे। विदुषी कवयित्री और संगीताचार्या डा सुभद्रा वीरेंद्र ने अपनी लोकार्पित पुस्तक ‘भारतीय संगीत: कल, आज और कल’ में ज्ञान के नए वातायन खोले हैं, जिनसे हमें अपनी इस महान विरासत को सूक्ष्मता से समझने की दृष्टि प्राप्त होती है।यह बातें बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, छायावाद की गौरव-स्तम्भ महीयसी महादेवी वर्मा की जयंती पर आयोजित पुस्तक-लोकार्पण समारोह और कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, संगीत और साहित्य का संबंध अन्योनाश्रय और अविभाज्य है। तथापि उसकी युग्म-साधना के उदाहरण बहुत थोड़े हैं। उनमे से एक सुभद्रा जी भी हैं, जिनकी संगीत-साधना और साहित्य-साधना परस्पर युग्म होकर चल रही है। उन्होंने महादेवी को श्रद्धापूर्वक स्मरण करते हुए, उन्हें मीरा के बाद, हिन्दी सबसे समर्थ कवयित्री बताया।समारोह का उद्घाटन करती हुईं, चाणक्य राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय की कुलपति न्यायमूर्ति मृदुला मिश्र ने कहा कि संगीत एक ऐसी कला है, जिसको परिभाषित करना अत्यंत कठिन है। संगीत, जीवन और प्रकृति के हर एक कण और क्षण में है। लोकार्पित पुस्तक की विदुषी लेखिका जो संगीत की वरिष्ठ साधिका भी हैं, अपने विशद ज्ञान और अनुभूति को सुंदर अभिव्यक्ति दी है। महादेवी जी की जयंती पर सुभद्रा जी की पुस्तक का लोकार्पण, अत्यंत ही आनंदप्रद है। इनकी पुस्तक में संगीत की कला, विज्ञान और दर्शन को एक साथ देखा जा सकता है।पुस्तक पर चर्चा करती हुईं, विदुषी संगीताचार्या डा रीना सहाय ने कहा कि संगीत में गुरु-परंपरा का विशेष महत्त्व है। इसका जीवित रहना अत्यंत आवश्यक है। आज संस्थागत प्रशिक्षण भी हो रहे हैं, किंतु फिर भी संगीत के विद्यार्थियों को अपनी पुरानी परंपरा का अनुपालन अवश्य करना चाहिए। सुभद्रा जी ने इस परंपरा पर महत प्रकाश डाला है। इन्होंने गहन शोध कर इस पुस्तक का प्रणयन किया है, इससे संगीत के विद्यार्थी और गुणीजन भी लाभान्वित होंग़े। विद्वान समीक्षक और साहित्यकार प्रो कुमार वीरेंद्र ने पुस्तक का परिचय देते हुए कहा कि यह पुस्तक विदुषी लेखिका के शोध-प्रबंध का किंचित परिवर्तित रूप है, जिसमें भारतीय संगीत के उद्भव, विकास और उतरोत्तर रूपांतरण पर गहन चिंतन किया गया है। समारोह के मुख्य अतिथि और पटना विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा एस एन पी सिन्हा, सम्मेलन की उपाध्यक्ष डा मधु वर्मा तथा साहित्य मंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने भी अपने विचार व्यक्त किए।इस अवसर पर आयोजित कवि-सम्मेलन का आरम्भ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी-वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, राज कुमार प्रेमी, शमा कौसर ‘शमा’, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा अर्चना त्रिपाठी, पूनम आनंद, बच्चा ठाकुर, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, डा शालिनी पाण्डेय, डा सुलक्ष्मी कुमारी, जय प्रकाश पुजारी, यशोदा शर्मा, डा रमा कांत पाण्डेय, डा उमा शंकर सिंह, डा आर प्रवेश, ई अशोक कुमार, राज किशोर झा, विभा रानी श्रीवास्तव, संजू शरण, इन्दु उपाध्याय, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, उमेश चंद्रा तथा डा अर्चना सिन्हा ने भी अपनी रचनाओं का पाठ किया। अतिथियों का स्वागत सम्मेलन की साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी ने तथा धन्यवाद ज्ञापन कृष्णरंजन सिंह ने किया। मंच का संचालन सम्मेलन की कलामंत्री डा पल्लवी विश्वास तथा कवि सुनील कुमार दूबे ने किया।
