पटना, ४ अप्रैल। देश के महान स्वतंत्रता सेनानी, कवि और पत्रकार पं माखनलाल चतुर्वेदी सच्चे अर्थों में ‘भारतीय आत्मा’ थे, जिन्हें स्वतंत्रता के लिए वलिदान हेतु आरंभिक काव्य-स्वर देने वाले कवियों में परिगणित किया जाता है। उन्हें यह महान संबोधन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने दिया था। वे जीवन-पर्यन्त राष्ट्र और राष्ट्र-भाषा के लिए संघर्षरत रहे। स्वतंत्रता-संग्राम में उन्होंने जेल की यातनाएँ भी भोगी और हिन्दी के प्रश्न पर भारत सरकार को ‘पद्म-भूषण समान’ भी वापस कर दिया। वे एक वलिदानी राष्ट्र-प्रेमी थे। उनके विपुल साहित्य के मूल में, प्रेम,राष्ट्रभक्ति और उत्सर्ग की भावना है। उस महान गीतकार की विश्रुत काव्य-रचना ‘पुष्प की अभिलाषा’ की ये पंक्तियाँ- “चाह नहीं मैं सुरबाला के गहनों में गूँथा जाऊँ,–मुझे तोड़ लेना वनमाली, उस पथ पर देना तुम फेंक/ मातृभूमि पर शीश चढ़ानें जिस पथ जाएँ वीर अनेक”, देश और देश के लिए मर मिटनेवाले लाँखों वीर सपूतों की अशेष प्रेरणा है।
यह बातें रविवार को, साहित्य सम्मेलन में कवि की १३३वीं जयंती पर आयोजित समारोह व कवि-सम्मेलन की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि, चतुर्वेदी जी अद्भूत प्रतिभा के कवि, पत्रकार और लेखक थे। उनकी प्रथम काव्य-पुस्तक, ‘हिम किरीटिनी’ के लिए,१९४३ में, उन्हें तबके श्रेष्ठतम साहित्यिक सम्मान, ‘देव-पुरस्कार’ से अलंकृत किया गया था। साहित्य अकादमी की ओर से हिन्दी का प्रथम अकादमी पुरस्कार प्राप्त करने का गौरव भी उन्हें ही प्राप्त है। उनकी पुस्तक ‘हिमतरंगिनी’ के लिए यह पुरस्कार १९५५ में साहित्य अकादमी की स्थापना के ठीक अगले वर्ष दिया गया था।
इस अवसर पर आयोजित कवि सम्मेलन का आरंभ कवयित्री चंदा मिश्र की वाणी वंदना से हुआ। वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के उपाध्यक्ष मृत्युंजय मिश्र करुणेश’ ने वर्तमान की त्रासदी को इन पंक्तियों में अभिव्यक्ति दी कि – “धुंधला- धुँधला है सबेरा कितना / रोशनी में है अंधेरा कितना/ कल जो गुलज़ार चमन-सा था वो/ उजड़ा-उजड़ा है बसेरा कितना”। डा शंकर प्रसाद का कहना था कि, “रोज़ अच्छे नहीं लगते आंसू/ ख़ास मौक़ा पर मज़ा देते हैं।” वरिष्ठ कवयित्री डा मधु वर्मा ने स्त्री-स्वर को मुखरित करते हुए कहा कि- “अनगढ़ पत्थर नहीं /रंग रूप से दिव्य/सजी-सँवरी सृष्टि की रचना हूँ/ टूट नहीं सकती/ विश्वास के डोर से बंधी हूँ”। व्यंग्य के कवि ओमप्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’ ने नसीहत दी कि, “नेता उपजने वाला खेत परती छोड़ दो/ मत बढ़ाओ भार धरती छोड़ दो”।
कवयित्री दा अर्चना त्रिपाठी ने पीड़ितों के दर्द को समझने की चेष्टा की और कहा कि “हिस्से उनके तो झोपड़ी भी नसीब नहीं, आसमां ओढ़ना तो धरती बिछौना होता/ कोई तो रीत ऐसा चलाया होता/ घर उनके भी ख़ुशी का आना होता”।
कवयित्री नम्रता कुमारी, राज कुमार प्रेमी, बच्चा ठाकुर, कुमार अनुपम, डा उमा शंकर सिंह, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, ओम् प्रकाश पांडेय’वदनाम’, जय प्रकाश पुजारी, डा आर प्रवेश, डा मुकेश कुमार ओझा, चितरंजन भारती, विनोद कुमार झा, डा अर्चना चौधरी, अभिलाषा कुमारी,राम सिंगार मयंक, डा कुंदन कुमार सिंह, बाँके बिहारी साव आदि कवियों ने भी अपनी रचनाओं से वातावरण में रस की वर्षा की। मंच का संचालन कवि सुनील कुमार दुबे ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन कृष्ण रंजन सिंह ने किया।
इस अवसर पर डा एच पी सिंह, राजीव रंजन, मनोज कुमार झा, सुरेंद्र चौधरी, अभिषेक कुमार, अमन वर्मा समेत अनेक प्रबुद्धजन उपस्थित थे।