वाराणसी कार्यालय से उप संपादक सिया राम मिश्र ।काशी विश्वनाथ बाबा हमारे थे हमारे है और हमारे रहेंगे। राम जन्म भूमि के बाद आया काशी विश्वनाथ बाबा का फैसला.ज्ञानवापी परिसर मामले में वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी की परिसर का पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की अपील अदालत ने मंजूर कर ली। वादमित्र के इस प्रार्थना पत्र पर पक्षकारों की बहस सुनने के बाद सिविल जज आशुतोष तिवारी ने इसे मंजूर करते हुए केंद्र और राज्य सरकार को यहां का सर्वेक्षण कराने का आदेश दिया है। विजय शंकर रस्तोगी ने बीएचयू के प्राचीन भारतीय इतिहास एवं संस्कृति विभाग के पूर्व विभागाध्यक्ष डा. एएस ऑल्टेकर की लिखित ‘हिस्ट्री ऑफ बनारस पुस्तक कोर्ट में प्रस्तुत किया। पुस्तक में ह्वेनसांग द्वारा विश्वनाथ मंदिर के लिंग की सौ फीट ऊंचाई और उस पर निरंतर गिरती गंगा की धारा के संबंध में किए गए उल्लेख को उन्होंने कोर्ट के सामने रखा। इन ऐतिहासिक तथ्यों का जिक्र करते हुए कहा कि प्राचीन विश्वनाथ मंदिर के ध्वस्त अवशेष प्राचीन ढांचा की अंदरूनी और बाहरी दीवारों में विद्यमान है।पुराने मंदिर की दीवारों और दरवाजों को चुनकर वर्तमान ढांचा का रूप दिया गया है। इसकी जांच होनी चाहिए। यह भी तर्क दिया कि पुराने विश्वनाथ मंदिर के अलावा पूरे परिसर में अनेक देवी-देवताओं के छोटे-छोटे मंदिर थे, जिनमें से कुछ आज भी विद्यमान हैं। खोदाई करके उनके चिह्न देखे जा सकते हैं। मौके के 35 फोटोग्रॉफ्स भी न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत किए गए। इस संबंध में केंद्र और राज्य सरकार के पुरातात्विक विभाग से उनके साक्ष्य प्राप्त करने की मांग की।बहस के दौरान वादमित्र विजय शंकर रस्तोगी ने यह भी ऐतिहासिक तथ्य सामने रखा था कि 2050 वर्ष पहले महाराजा विक्रमादित्य ने श्रीकाशी विश्वनाथ मंदिर का निर्माण करवाया था जिसे 1664 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने तोड़कर वहां मस्जिद बनवा दिया था। वर्तमान ज्योतिर्लिंग की स्थापना अहिल्याबाई होल्कर ने 1780 में करवाया था।सुनवाई के दौरान वादी पक्ष की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजेंद्र प्रसाद पांडेय, शिवानंद पांडेय, अमरनाथ शर्मा ने भी पक्ष रखा। सुन्नी सेंट्रल वक्फ बोर्ड और अंजुमन इंतजामिया मसाजिद के अधिवक्ता अभय नाथ यादव, तौहीद खान, रईस अहमद, मुमताज अहमद आदि ने पुरातात्विक सर्वेक्षण कराने की इस अपील पर आपत्ति जताई थी।