पटना, ११ अप्रैल। संस्कृत संसार की श्रेष्ठतम वैज्ञानिक भाषा है। नासा ने भी यह माना है कि कम्प्यूटर की सबसे घनिष्ठ मित्र-भाषा संस्कृत ही है। संस्कृत में भेजे गए अंतरिक्षीय-संदेश भी नहीं बदलते। अन्य भाषाओं में भेजे गए संदेश, उलटी अवस्था में बदल जाते हैं। इसीलिए नासा ने अपने वैज्ञानिकों के लिए संस्कृत का अध्ययन अनिवार्य कर दिया है। यह सिद्ध करता है कि भविष्य के कंप्यूटर और विज्ञान की भाषा संस्कृत होगी। इसलिए संस्कृत शिक्षा पर विशेष बल दिया जाना चाहिए। इसे औपचारिक-शिक्षा का अनिवार्य विषय बनाया जाना उचित होगा। यह बातें, रविवार को, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आरंभ हुई साप्ताहिक संस्कृत पाठशाला का उद्घाटन करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि संस्कृत-साहित्य में आध्यात्मिक-ज्ञान ही नहीं विशुद्ध-विज्ञान का अक्षय-कोश स्थित है, जिस पर अनुसंधान कर, विश्व भर के वैज्ञानिक नूतन अविष्कार कर रहे हैं। वस्तुतः ये अविष्कार नए नहीं है। ये सभी वैदिक काल में उपलब्ध थे। संसार संस्कृत से विमुख होकर उन्हें भुला दिया था। आज से हज़ारों वर्ष पूर्व, भारत को यह ज्ञात था कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। इसका स्पष्ट उल्लेख सामवेद की एक ऋचा में किया गया है। ग्रह-नक्षत्रों के गुण,दोष, यहाँ तक कि रंग-रूप के विषय में भी हज़ारों वर्ष पूर्व के भारतीय अवगत थे। हमें वायुयान ही नहीं आंतरिक्ष-यान तक बनाना आता था। यह सबकुछ हमारे प्राच्य संस्कृत साहित्य में उपलब्ध है।उन्होंने कहा कि आरंभ हुआ यह विशेष पाठ्यक्रम, प्रतिभागियों को मात्र दस कक्षाओं में संस्कृत बोलना सिखा देगा। इससे न केवल सबके मन से संस्कृत की दुरूहता का भय समाप्त होगा, बल्कि वे संस्कृत के मूल ग्रंथों को स्वयं पढ़ने में सक्षम होंगे। हिन्दी के साहित्यकार इससे और अधिक लाभान्वित होंग़े, क्योंकि वे शब्दों के विशाल साम्राज्य से सरलता से जुड़ जाएँगे। नए शब्द गढ़ने की संस्कृत में अपार संभावनाएँ हैं।उन्होंने कहा कि इस शैक्षणिक पाठ्यक्रम को आरंभ कर, सम्मेलन अपने गौरवशाली अतीत की ओर भी झांक रहा है, जब सम्मेलन में संस्कृत समेत देश-विदेश की अनेक भाषाओं की शिक्षा दी जाती थी। पाठशाला के मुख्य-प्रशिक्षक डा मुकेश कुमार ओझा ने प्रथम कक्षा में संस्कृत-वादन के लिए आवश्यक सरल पंक्तियों के सृजन की विधि बताई, जिससे प्रतिभागी संस्कृत-प्रेमी चकित रह गए। दो घंटे की कक्षा के पश्चात सबके चेहरे खिले हुए थे और सबमें एक नया आत्म-विश्वास झलक रहा था। प्रत्येक रविवार को अपराहन ४ से ६ बजे तक चलने वाला यह विशेष ‘संस्कृत-वादन’ पाठ्यक्रम १० कक्षाओं में पूरा होगा। यह पूरा पाठ्यक्रम निःशुल्क कराया जा रहा है। लगभग ढाई माह चलने वाले इस पाठ्यक्रम की पूर्णता के पश्चात दीक्षांत- समारोह आयोजित कर, प्रतिभागियों को प्रमाण-पत्र दिए जाएँगे। इस आयोजन की विशेष उपलब्धि यह है कि इसमें विद्यालय के छात्र-छात्राओं से लेकर ७० वर्ष की आयु के लोग शिक्षा-ग्रहण कर रहे हैं। वरिष्ठ प्रतिभागियों में सम्मेलन के उपाध्यक्ष डा शंकर प्रसाद, डा मधु वर्मा, लक्ष्मी प्रसाद साहू, सुनील कुमार दूबे, प्रो प्रतिभा सहाय, डा अंजनी कुमार वर्मा, डा ध्रुब कुमार, ओम् प्रकाश पाण्डेय ‘प्रकाश’, कुमार अनुपम, चंदा मिश्र, राज कुमार प्रेमी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा सुलक्ष्मी कुमारी, डा शालिनी पाण्डेय, डा कुंदन कुमार, बच्चा ठाकुर के नाम सम्मिलित है। प्रथम-सत्र में कुल विद्यार्थीयों की संख्या ४० रही।कक्षा आरंभ होने से पूर्व उपस्थित साहित्यकारों ने विदुषी कवयित्री डा गिरिजा वर्णवाल को, उनकी जयंती पर श्रद्धापूर्वक स्मरण किया तथा उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित की।