पटना, १६ अप्रैल। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने, सुप्रसिद्ध गांधीवादी शिक्षाविद और राजनेता प्रो अरुण कुमार तथा सुप्रसिद्ध कवि सतीश प्रसाद सिन्हा के निधन पर गहरा दुःख व्यक्त किया है। सम्मेलन सभागार में शुक्रवार को आयोजित शोक-गोष्ठी में साहित्यकारों ने कहा कि इन दो मनीषी विद्वानों और हिन्दी के उन्नायकों के निधन से देश ने दो अत्यंत मूल्यवान हिन्दी-सेवियों को खो दिया है। स्मरणीय है कि प्रो अरुण कुमार का निधन गत गुरुवार को ९० वर्ष की आयु में पटना स्थित उनके आवास पर तथा कवि सतीश प्रसाद सिन्हा का निधन ८३ वर्ष की आयु में, पटना के एक निजी अस्पताल में १३ अप्रैल को हो गया। साँस लेने में कठिनाई की शिकायत पर उन्हें गत ११ अपैल को अस्पताल में भर्ती कराया गया था।शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि गांधीवाद को जीवन में उतारने वाले प्रो कुमार का संपूर्ण व्यक्तित्व सरलता, सादगी और उच्च विचार का विग्रह था। हिन्दी के प्रति उनकी आस्था श्रद्धेय थी। साहित्य सम्मेलन के प्रति उनके मन में अगाध श्रद्धा थी और वे सम्मेलन के आयोजनों में उत्साह पूर्वक भाग लेते थे। पटना का नाम ‘पाटलिपुत्र’ कर इस नगर का गौरव वापस लाया जाए, इस विचार के भी वो दृढ़ पक्षधर थे। विगत दशक में ज़ोर-शोर से चलाए गए इस आंदोलन में उन्होंने प्रत्यक्ष भागीदारी दी थी। राजनीति में शुद्धता के वे ऐसे प्रतीक थे, जिनसे प्रेरणा ली जानी चाहिए। धवल वस्त्र से सुशोभित उनका सुदर्शन व्यक्तित्व, गांधी-टोपी से सदैव शोभायमान रहा। उनके निधन से समस्त सारस्वत आयाम एक बड़ी रिक्ति अनुभव कर रहा है।डा सुलभ ने कवि सतीश प्रसाद सिन्हा को स्मरण करते हुए कहा कि स्व सिन्हा मृदुभावों के महनीय कवि-साहित्यकारों में परिगणित होते थे। हिन्दी साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में उन्होंने प्रचुर लिखा। कविता, कहानी, निबंध, समालोचना और नाट्य लेखन में भी उन्होंने विशेष प्रतिष्ठा अर्जित की। उनके नाटक ‘अपने-पराये’ की ख्याति समस्त हिन्दी-पट्टी और रंगकर्मियों के बीच थी। उनका एक काव्य-संकलन ‘सपने हुए सयाने’ शीघ्र प्रकाशित होने वाली थी, जिसके लिए वे एक ब्रती की भाँति विगत कुछ काल से साधना-रत थे। उन्होंने पटना उच्च न्यायालय में सचिव के पद से सेवा-निवृति प्राप्त की थी।शोक प्रकट करने वालों में सम्मेलन के प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, मृत्यंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, कृष्णरंजन सिंह, डा शकुंतला ठाकुर, जय प्रकाश पुजारी, डा मधु वर्मा, डा कल्याणी कुसुम सिंह तथा प्रणब कुमार समाजदार के नाम सम्मिलित हैं।