पटना, १८ अप्रैल। स्मृति-शेष कवि चंद्र प्रकाश माया, मृदुभावों के एक अत्यंत रस-सिक्त और प्रतिभाशाली कवि थे। उनकी ग़ज़लें, उनके गीतों की भाँति ही जीवन से भरी और पीयूष-वाहिनी हैं। उनकी काव्य-रचनाओं का मौलिक-स्वर प्रेम और समर्पण है। उनमे जीवन के प्रति गहरा अनुराग और मनुष्यता के प्रति एक गहरी आस्था है। उनकी ग़ज़लें समता, समरस्ता और सौहार्द की बात करती हैं। प्रेम की बात करती हैं। एक ऐसे कल्याणकारी और मूल्यवान समाज बनाने की बातें, रविवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में, स्तुत्य कवि चंद्र प्रकाश माया की पाँचवी पुण्य-तिथि पर आयोजित स्मृति-समारोह में उनके ग़ज़ल-संग्रह ‘अंदाज़ अपना अपना’ का लोकार्पण करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि माया जी ने पद्य की प्रायः सभी विधाओं में अधिकार पूर्वक लिखा। वे छंद के गुणी और उसके प्रयोग में अत्यंत निपुण थे। कविता उनके लिए ‘जीवन और साँस’ की तरह थी। उनकी काव्य-भाषा सरल और संप्रेषण का अद्भुत सामर्थ्य रखती है। उनकी पीयूष-वाहिनी कविताओं की भाँति उनका कंठ-स्वर भी प्रियकर और मार्मिक था। इसीलिए मंचों के कवियों और श्रोताओं में भी उनका स्तुत्य समादर था। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन इस ग़ज़ल संग्रह का प्रकाशन कर कृतकृत्य अनुभव कर रहा है, जो उनकी विदुषी भार्या और कवयित्री यशोदा शर्मा के अथक श्रम का प्रतिफल है। यशोदा जी ने ग़ज़लों का संग्रह और संपादन कर अपने दिवंगत पति की न केवल अभिलाषा की पूर्ति की है, अपितु अपने पत्नी-धर्म का निर्वहन भी किया है। वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र कुमार, कुमार अनुपम, श्रीकांत व्यास, चितरंजन भारती, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, जय प्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, डा हर्ष वर्द्धन, ईश्वर नारायण सिंह, चंद्र शेखर आज़ाद, नेहाल कुमार सिंह ‘निर्मल’ ने भी अपने विचार व्यक्त किए। मंच का संचालन सम्मेलन के प्रबंधमंत्री कृष्ण रंजन सिंह ने तथा धन्यवाद-ज्ञापन माया जी के पुत्र प्राणेश कुमार ने किया।