पटना, २० अप्रैल। अपने गीत-ग़ज़लों में प्रौढ़ता और गंभीरता के लिए सुख्यात और आदरणीय कवि घनश्याम, काव्य-प्रतिभा से संपन्न एक विनम्र और चिंतनशील कवि थे। उनके आकस्मिक निधन से साहित्य जगत को, विशेषकर हिन्दी-गजलगोई की बड़ी क्षति पहुँची है। विगत कुछ वर्षों में उन्होंने अपनी श्रेष्ठ रचनाएँ दीं हैं। उनका कुछ वर्ष और जीवित रहना साहित्य-संसार के लिए आवश्यक था। उनका श्रेष्ठतम आना अभी भी शेष था। आने वाली उनकी समस्त काव्य-रचनाएँ, सृजन की मानक सिद्ध हो सकती थीं। हमने उन्हें खोकर एक बड़ी अभिलाषा को खो दिया है।
यह बातें मंगलवार को, वरिष्ठ कवि घनश्याम के निधन पर,बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में आयोजित शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए,सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि साहित्य सम्मेलन में आयोजित होने वाले कवि-सम्मेलनों में जिन कवियों के कारण, काव्योत्सव को गरिमा प्राप्त होती थी, उनमे अगर-पांक्तेय हुआ करते थे घनश्याम जी। उनकी पंक्तियाँ समाचार-पत्रों की सुर्ख़ियाँ बना करती थी। विगत ३१ मार्च को प्रणम्य कवि डा मुरलीधर श्रीवास्तव ‘शेखर’ जी की जयंती पर आयोजित कवि-सम्मेलन में उन्होंने जो ग़ज़ल पढ़ी उसके इस शेर “मुझमें बहती है जो नदी मेरी/ दर असल है वो शायरी मेरी”, को कुछ पत्रों ने समाचार का शीर्ष बनाया था। सच है कि उनके भीतर गीत-ग़ज़लों की एक पुण्य-सलीला नदी बहती थी ! क्या पता था कि हम उन्हें आख़िरी बार सुन रहे हैं! इसके ठीक ११ दिन पहले उन्हें, साहित्य सम्मेलन ने डा शैलेंद्र नाथ श्रीवास्तव स्मृति-सम्मान से अलंकृत किया था। पटना उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीश न्यायमूर्ति संजय कुमार ने उन्हें, सम्मेलन की ओर से पाँच हज़ार रूपए की सम्मान-राशि, अभिनंदन-पत्र, वंदन-वस्त्र, स्मृति-चिन्ह और पुष्प-हार प्रदान कर सम्मानित किया था।
सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, मृत्युंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, कुमार अनुपम, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, बाँके बिहारी साव, कृष्ण रंजन सिंह, डा ध्रुब कुमार, प्रभात धवन, सुनील कुमार दूबे, राज कुमार प्रेमी, डा अर्चना त्रिपाठी, पूनम आनंद, विभा रानी श्रीवास्तव, जय प्रकाश पुजारी, आनंद किशोर मिश्र, डा सागरिका राय, डा शालिनी पाण्डेय ने भी अपने शोकोदगार प्रकट किए।
स्मरणीय है कि कवि घनश्याम का निधन १९ अप्रैल को, ७० वर्ष की आयु में, पटनासिटी के लल्लू बाबू का कुँचा स्थित अपने आवास पर अपराह्न ४ बजे हो गया था। वे ‘कोरोना’ संक्रमित हो गए थे। आज दिन के २ बजे खाजेकलां घाट पर, उनका अग्नि-संस्कार संपन्न हुआ। उनके कनिष्ठ पुत्र चैतन्य चंदन ने उन्हें मुखाग्नि दी। वे अपने पीछे अपनी विधवा उषा किरण देवी, दो पुत्र एकलव्य कुमार और चैतन्य चंदन तथा पुत्री शुभ्रा शिवांगी समेत पूरे परिवार और परिजनों को शोकाकुल छोड़ गए हैं।