पटना, २२ अप्रैल। ‘वाहिद’ के घर दीप जले तो मंदिर तक उजियाला जाए/ दोनों तरफ़ लिखा हो ‘भारत’ सिक्का वही उछाला जाए! राष्ट्रीयता और राष्ट्रीय-सद्भावना की इन अमर पंक्तियों के रचनाकार और सद्भाव के लोकप्रिय छंदकार डा वाहिद अली ‘वाहिद’ नही रहे। विद्वान प्राध्यापक और क़लमकार प्रो शैलेश्वर सती प्रसाद ने भी महाप्रयाण कर लिया। अपनी शायरी से दुनिया का ध्यान खींचने वाले अज़ीम शायर सुल्तान अख़्तर ने भी दुनिया को अलविदा कह दिया। कितने गुजर गए, न जाने कितने हैं क़तार में! यह अत्यंत कठिन समय है। हमें धैर्य रखना होगा। अपनों को खोने की पीड़ा को सहना होगा। जीवन को ज़िंदा रखना होगा।यह बातें, गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन में साहित्य-सेवियों के निधन पर आयोजित शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि वाहिद का बिहार से और साहित्य सम्मेलन से बहुत गहरा संबंध रहा। उनकी पंक्तियाँ और छंद जितने स्पर्शी थे, उनका पढ़ने का अंदाज़ भी अद्भुत था। उनकी हर एक पंक्ति और छंद पर तालियाँ बचती थी। ओज और सद्भावना का वैसा कवि इस पीढ़ी में कोई दूसरा न था। उनके काव्य-पाठ की शैली ऐसी थी कि मुर्दे भी कब्र से निकल कर तालियाँ बजाने लगे। साहित्य सम्मेलन का यह सौभाग्य रहा कि वे अनेक बार सम्मेलन में काव्य-पाठ किया और सम्मेलन ने उनकी बहुचर्चित काव्य-कृति ‘वाहिद के राम’ के दूसरे संस्करण का प्रकाशन भी किया, जिसकी प्रतियाँ उन्होंने भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी दी थी। उनकी पंक्ति ‘मियाँ वाहिद बोले मौला अली बजरंग बली बजरंग बली’, उनके चाहने वालों की ज़ुबान पर रहती है।अखिल भारतीय गीत ग़ज़ल मंच के महासचिव आनंद किशोर मिश्र ने कहा कि साहित्य सम्मेलन ३७वें माहाधिवेशन में हिन्दी के सम्मान में एक छंद पढ़ते हुए उन्होंने कहा था – “रसखान रहीम के वारिश हैं हम से कभी कोई निराशा न होगी/ भाषा के नाम पर देश बँटे इससे भी बुरी अभिलाषा न होगी/ स्वागत है सबका घर में पर देश की दूसरी भाषा न होगी” । वर्ष १९५२ में प्रथम केसरिया महोत्सव में उन्हें चंपारण बुलाया था। तबसे पूरा चंपारण उनका दीवाना रहा।प्रो शैलेश्वर सती प्रसाद को स्मरण करते हुए डा सुलभ ने कहा कि अंग्रेज़ी के प्राध्यापक होकर भी उन्होंने हिन्दी भाषा और साहित्य के उन्नयन में प्रणम्य कार्य किए। उन्होंने बिहार के दिवंगत किशोर कवि सुमित प्रसाद ‘सुमिरास्को’ की सैकड़ों अंग्रेज़ी कविताओँ का न केवल अनुवाद किया, अपितु उसे अंग्रेज़ी साहित्य में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति भी दिलाई। वे मूल्यवान क़लमकार ही नहीं सफल कूँचीकार भी थे। बहुत थोड़े से लोग जानते हैं कि वे एक गुणी चित्रकार भी थे।शायर सुल्तान अख़्तर को स्मरण करते हुए उन्होंने कहा कि उनके मन को यह मलाल रह गया कि उन्हें साहित्य सम्मेलन बुला न सके। कोरोना आपदा के आने के कुछ दिन पहले ही उन्होंने साहित्य सम्मेलन में ग़ज़ल पढ़ने की अपनी इच्छा ज़ाहिर की थी। हमारी बातें फ़ोन पर होती रही थी। हमारी इच्छा थी कि उन्हें ‘एकल-पाठ’ के लिए ससम्मान आमंत्रित किया जाए, जैसे हमने कलीम आजिज़ साहब को बुलाया था। पर इस कोरोना ने उन्हें आने न दिया और आख़िर जान ही ले ली। समग्र साहित्य-जगत इन साहित्याकारों के सदा के लिए बिछुड़जाने पर दुखी और शोकाकुल है। शोकोदगार व्यक्त करने वालों में सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, डा शंकर प्रसाद, डा भूपेन्द्र कलसी, आनंद किशोर मिश्र, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, श्रीकांत व्यास, कृष्ण रंजन सिंह, जय प्रकाश पुजारी, हरेंद्र चतुर्वेदी के नाम शामिल हैं।