पटना /गीतों के राजकुमार थे वो ! हिन्दी भाषा और साहित्य के ही नहीं, साहित्यकारों के भी प्रेमी थे। गीत और गीतकारों के प्रति उनकी श्रद्धा अनन्य थी। साहित्य-सम्मेलन के वे एक सुदृढ़ स्तम्भ थे। उन्हें खोकर आज साहित्य-सम्मेलन उजड़ा हुआ सा अनुभव कर रहा है। उनके निधन से बिहार का संपूर्ण साहित्य-समाज मर्माहत है। हिन्दी ने अपना एक बहुमूल्य हीरा खो दिया है।
यह बातें गुरुवार को बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा ह्वाट्सऐप समूह में वरिष्ठ कवि और सम्मेलन के प्रचार मंत्री कवि राजकुमार प्रेमी के निधन पर आयोजित शोक-गोष्ठी की अध्यक्षता करते हुए, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कही। डा सुलभ ने कहा कि प्रेमी जी सद्भावना, प्रेम और ऋंगार के ही नहीं अध्यात्म और दर्शन के भी मूल्यवान कवि थे। उनके मधुर-कंठ और मृदुल शब्द-विन्यास के प्रेमी गाँव-क़स्बों तक फैले थे। बिहार और बिहार के बाहर के कवि-सम्मेलनों में वे दूर-दूर से बुलाए जाते थे। उनके गीतों में पांडित्य की कृत्रिमता नहीं सहजता,सरलता और बोध-गम्यता थी, जो आम श्रोताओं के दिलों में उतरती थी। साहित्य-सम्मेलन से जुड़कर प्रेमी जी तो हमसे जुड़े हुए थे हीं, अपनी संस्था ‘विश्व जागरण मंच’ का अध्यक्ष बनाकर मुझे भी अपने गाँठ से बाँध लिया था। उनका निधन संपूर्ण साहित्यिक समाज के लिए क्षति तो है ही, मेरे लिए व्यक्तिगत क्षति भी है।
शोक व्यक्त करने वालों में सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्रनाथ गुप्त, मृत्यंजय मिश्र ‘करुणेश’, डा शंकर प्रसाद, डा कल्याणी कुसुम सिंह, डा मधु वर्मा, डा कुमार अरुणोदय, प्रधानमंत्री डा शिववंश पाण्डेय, साहित्यमंत्री डा भूपेन्द्र कलसी, डा ध्रुब कुमार, डा अर्चना त्रिपाठी, सुनील कुमार दूबे, डा मेहता नगेंद्र सिंह, डा शालिनी पाण्डेय, कृष्ण रंजन सिंह, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, डा पल्लवी विश्वास, भगवती प्रसाद द्विवेदी, डा शिवनारायण, पं गणेश झा, अर्जुन सिंह, डा सतीश राज पुष्करणा, कुमार अनुपम, पूनम आनंद, डा सागरिका राय, डा सुलक्ष्मी कुमारी, विजय गुंजन, प्रो वासुकीनाथ झा, जयप्रकाश पुजारी, बाँके बिहारी साव, प्रो सुशील झा, डा लक्ष्मी सिंह, रमेश कँवल, प्रवीर पंकज, अंजुला सिन्हा,नीरव समदर्शी, डा नागेशवर प्रसाद यादव, विभा अजातशत्रु, डा मनोज गोवर्द्धनपुरी, अशोक कुमार सिंह, बिंदेश्वर प्रसाद गुप्ता, शुभ चंद्र सिन्हा, प्रेमलता सिंह, अभिलाषा कुमारी, डा अशोक प्रियदर्शी, कुंदन कुमार, मनोज उपाध्याय, लता प्रासर, पूनम देवा, डा सुधा सिन्हा,श्याम किशोर,रेखा सिन्हा शामिल हैं।
स्मरणीय है कि गुरुवार की सुबह ४ बजे, कवि प्रेमी ने रमनारोड स्थित अपने निजी आवास में, ७६ वर्ष की आयु में अपना लौकिक शरीर छोड़ दिया। उनके निधन की सूचना मिलते ही, सम्मेलन अध्यक्ष डा अनिल सुलभ उनके घर पहुँचे तथा रोते विलखते परिजनों को सांत्वना दी। डा सुलभ और वरिष्ठ पत्रकार-साहित्यसेवी डा ध्रुव कुमार शव-यात्रा में भी सम्मिलित हुए। पार्थिव-देह का अग्नि-संस्कार आज दूसरे पहर पवित्र गंगा के तट पर गुलबीघाट में संपन्न हुआ। मुखाग्नि उनके बड़े पुत्र चंद्र प्रकाश ने दी। इस अवसर पर उनके दूसरे पुत्र सूर्य प्रकाश समेत अनेक परिजन उपस्थित थे। प्रेमी जी अपने पीछे अपनी विधवा और पाँच पुत्रियों समेत एक बड़े परिवार को रोते विलखते छोड़ गए हैं ।