पटना /साहित्य जगत को एक और बड़ा आघात ! नहीं रहीं डा शांति जैन ! कल रात्रि निद्रा में ही देह का त्याग कर दिया ! पूर्व से ही आघात सह रहे हृदय को एक और बदी चोट लगी ! हमने साहित्य और साहित्य सम्मेलन की एक प्रज्वल प्रतिभा को खो दिया है ! मेरी एक और भारी क्षति ! ईश्वर दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें ! वो तो अपने नाम के अनुरूप शांति से निकल पड़ी किंतु हज़ारों द्रवित मन को अशांत कर गईं हैं, केंद्र सरकार द्वारा दिया जाने वाला नागरिक सम्मान पद्मश्री बुंदेलखंड के छतरपुर जिले की बकस्वाहा में जन्में स्व. हेमराज जैन की (बिहार गौरव गान लिखने वाली) डॉ. शांति जैन को लोक साहित्य पर विशेष कार्य करने और उनकी साहित्य साधना के लिए नवाजा गया है। वरिष्ठ साहित्यकार डॉ. शांति जैन का जन्म 4 जुलाई 1946 को हुआ था, जिन्होंने एमए (संस्कृत एवं हिंदी) पीएचडी, डी.लिट, संगीत प्रभाकर की शिक्षा प्राप्त की। बिहार प्रदेश के भोजपुर जिले के आरा नगर में स्थित एचडी जैन कॉलेज से प्रोफेसर एवं संस्कृत की विभागाध्यक्ष पद से सेवानिवृत्त हुई हैं। वह आकाशवाणी, दूरदर्शन की कलाकार व कवियत्री हैं। आप पिछले कई दशक से पटना (बिहार) में रह रही हैं। इनके पिता स्व. हेमराज जैन नौकरी के लिए बकस्वाहा से आरा गए हुए थे।स्वर संगम में भी माहिर: साहित्य पर पकड़ के साथ-साथ उनकी मधुर आवाज डॉ. शांति जैन की पहचान रही है। 1970 के दशक में रेडियो पर उनका गाया रामायण बेहद लोकप्रिय हुआ था। जयप्रकाश नारायण जब बेहद बीमार होकर घर पर थे तो डॉ. शांति जैन उनके घर जाकर रोज रामायण सुनाया करती थीं।साहित्य साधना में योगदान
इनकी श्रेष्ठतम रचनाओं में एक वृत्त के चारों ओर, हथेली का आदमी, हथेली पर एक सितारा (काव्य), पिया की हवेली, छलकती आंखें, धूप में पानी की लकीरें, सांझ घिरे लागल, तरन्नुम, समय के स्वर, अंजुरी भर सपना (गजल) गीत संग्रह, अश्मा, चंदनबाला (प्रबंधकाव्य), चैती (पुरस्कृत), कजरी, ऋतुगीत- स्वर और स्वरूप, व्रत और त्योहार, पौराणिक एवं सांस्कृतिक पृष्ठभूमि, उगो है सूर्य, लोकगीतों के संदर्भ और आयाम (पुरस्कृत), बिहार के भक्तिपरक लोकगीत, व्रत त्योहार कोश, तुतली बोली के गीत (लोक साहित्य), वसंत सेना, वासवदत्ता, कादंबरी, वेणीसंहार की शास्त्रीय समीक्षा (क्लासिक्स), एक कोमल क्रांतिवीर के अंतिम दो वर्ष (डायरी) सहित कई दर्जन लोकप्रिय किताबें लिख चुकी हैं। डॉ. जैन कई संस्थानों की पदाधिकारी व सदस्य रह चुकी थी. वह आज भी लेखन कला में काफी सक्रिय थी.