पटना, ८ मई। हिन्दी के वरिष्ठ ध्वज-वाहक और दरभंगा के सुप्रसिद्ध समाजसेवी बाबू सुरेंद्र यादव नहीं रहे। ७५ वर्ष की आयु में उन्होंने काशी में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय परिसर स्थित सर सुन्दरलाल अस्पताल में अपनी अंतिम साँस ली। वे अपने कनिष्ठ पुत्र और साहित्यकार प्रो अशोक कुमार ज्योति से मिलने विगत २ मई को ही अपने गाँव ढांगा, किरतपुर से बनारस गए थे, जो विश्वविद्यालय में सहायक प्राध्यापक भी हैं। काशी के हरिश्चन्द्र घाट पर उनका अग्नि-संस्कार किया गया। उनके ज्येष्ठ पुत्र और रेलकर्मी अनिल कुमार यादव ने मुखाग्नि दी।उनके निधन पर शोक प्रकट करते हुए, बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष डा अनिल सुलभ ने कहा कि यादव जी का व्यक्तित्व बहुआयामी और महान था। वे अर्थाभाव के कारण स्वयं तो उच्च शिक्षा नहीं प्राप्त कर सके, किंतु अपने गाँव और इलाक़े में शिक्षा की ऊँची अलख जगाई। अपने बच्चों को उच्च शिक्षा में निष्णात किया। उनके कनिष्ठ पुत्र डा ज्योति और पुत्रवधु डा प्रभा ज्योति दोनों ही अपने गाँव के पहले एम ए और पी एच डी हैं। उनके ही अध्यवसाय से उनके गाँव में तथा अनेक दूसरे गाँव में भी विद्यालय की स्थापना हुई। वे ग़रीबों और पीड़ितों के हितरक्षक और सहायक थे। सभी अभावग्रस्त लोगों की सेवा करना देश की सेवा समझते थे।डा सुलभ ने कहा कि वे पटना में बिहार सरकार की सचिवालय सेवा में थे किंतु समाज और हिन्दी की भी सेवा में लगे रहे। साहित्य का कोई उल्लेखनीय सृजन नहीं कर पाए किंतु हिन्दी भाषा के वे परम हितैषी और उसके ध्वज-वाहक थे। बिहार हिन्दी साहित्य सम्मेलन से भी जुड़े हुए थे और पुरानी पीढ़ी के साहित्यिकों के साथ सदैव हिन्दी के कार्यों में मन-प्राण से लग जाते थे। उनके निधन से समाज और हिन्दी का एक बड़ा हितैषी हमने खो दिया है।शोक प्रकट करने वालों में सुविख्यात साहित्यकार आचार्य निशांतकेतु, वरिष्ठ कवि लेखक डा देवेंद्र दीपक, डा राम नंदन रमण, जयनारायण यादव, सम्मेलन के उपाध्यक्ष नृपेंद्र नाथ गुप्त, डा शंकर प्रसाद, डा भूपेन्द्र कलसी, डा कल्याणी कुसुम सिंह, गणेश राम, जीतन साफ़ी, बलराम चौपाल, डा सागरिका राय, पूनम आनंद, डा विनय कुमार विष्णुपुरी, सुनीलकुमार दूबे, अम्बरीष कांत और प्रो सुशील कुमार झा के नाम सम्मिलित हैं।